अधूरा मकान-2 / संध्या गुप्ता

कोई मकान अधूरा क्यों रह जाता है !! सलीब की तरह टँगा है यह सवाल मेरे मन में अधूरे मकान को देख कर मुझे पिता की याद आती है उनकी अधूरी इच्छाएँ और कलाकृतियाँ याद आती हैं देख कर कोई अधूरा मकान उम्र के आख़िरी पड़ाव में एक स्त्री के आँचल में एक बेबस आदमी… Continue reading अधूरा मकान-2 / संध्या गुप्ता

अधूरा मकान-1 / संध्या गुप्ता

उस रास्ते से गुज़रते हुए अक्सर दिखाई दे जाता था वर्षों से अधूरा बना पड़ा वह मकान वह अधूरा था और बिरादरी से अलग कर दिए आदमी की तरह दिखता था उस पर छत नहीं डाली गई थी कई बरसातों के ज़ख़्म उस पर दिखते थे वह हारे हुए जुआरी की तरह खड़ा था उसमें… Continue reading अधूरा मकान-1 / संध्या गुप्ता

सर्वार्पण / संतलाल करुण

हे परमेश्वर ! अपने समान तन-मन, बल-बुद्धि ज्ञान-विवेक, दृष्टि-दर्शन अपने समान हाथ-पाँव, गुण-धर्म ध्वंस-निर्माण का पुरुषार्थ तुमने ही दिया । तुमने ही दिया अपने जैसा हृदय, वेदना वैसी ही भावना, अनुभूति शब्द, वाणी, रोदन-हास्य श्रवण-कथन का माधुर्य वेद-पुराण, गीता-गायत्री । तुमने ही तो दिया कर्मक्षेत्र अपनी तरह बहुरूप कर्त्ता-धर्ता बनाया कर्मफल दिए मधुर-विषाक्त आकर्ष-विकर्ष दिया… Continue reading सर्वार्पण / संतलाल करुण

पूर्वापर : आत्म से परात्म की ओर / संतलाल करुण

काव्यशास्त्र की समस्त अवधारणाएँ समय की सामर्थ्य से पराभूत रही हैं | विषय, विषयी और प्रतिविषयी सब समय के आवेग में अपनी तितीर्षा पूरी करते रहे हैं और उन सब के समानान्तर शास्त्रीय मानदण्ड भी अपना स्वरूप परिवर्तित करता रहा है | फिर भी युग-युगीन शास्त्रीय निष्कर्षों के विभिन्न अभिमत इस तथ्य पर अधिकतर एकजुट… Continue reading पूर्वापर : आत्म से परात्म की ओर / संतलाल करुण

इक प्यार का नग़मा है / संतोषानन्द

इक प्यार का नग़मा है, मौज़ों की रवानी है ज़िन्दगी और कुछ भी नही,तेरी मेरी कहानी है… कुछ पा कर खोना है, कुछ खो कर पाना है जीवन का मतलब तो ,आना और जाना है दो पल के जीवन से इक उम्र चुरानी है.. तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूँ तू मेरा… Continue reading इक प्यार का नग़मा है / संतोषानन्द

ओ मेघा रे, मेघा रे / संतोषानन्द

ओ मेघा रे, मेघा रे ओ मेघा रे, मेघा रे मत परदेस जा रे आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे | मेरे गम की तू दवा दे आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे | चलो और दुनिया बसाएँगे हम-तुम यह जन्मों का नाता निभाएँगे हम-तुम ओ मेघा रे, मेघा रे हमको तू दुआ… Continue reading ओ मेघा रे, मेघा रे / संतोषानन्द

धरती स्वर्ग दिखाई दे / संतोष कुमार सिंह

करके ऐसा काम दिखा दो, जिस पर गर्व दिखाई दे। इतनी खुशियाँ बाँटो सबको, हर दिन पर्व दिखाई दे। हरे वृक्ष जो काट रहे हैं, उन्हें खूब धिक्कारो, खुद भी पेड़ लगाओ इतने, धरती स्वर्ग दिखाई दे।। करके ऐसा काम दिखा दो… कोई मानव शिक्षा से भी, वंचित नहीं दिखाई दे। सरिताओं में कूड़ा-करकट, संचित… Continue reading धरती स्वर्ग दिखाई दे / संतोष कुमार सिंह

मातृभूमि तेरी जय हो / संतोष कुमार सिंह

मातृभूमि तेरी जय हो। पुण्यभूमि तेरी जय हो।। शस्य श्यामला जन्मदायिनी। रत्नगर्भ संचित प्रदायिनी।। हिमगिरि मस्तक मुकुटधारिणी। बहती गंगा मुक्तदायिनी।। ईश्वर का इस पुण्यभूमि पर, आना जैसे तय हो। सत्य-अहिंसा वाला देश। देता रहे शान्ति संदेश।। षट्ऋतुओं का आना-जाना। विविधि तरह का रुचिकर खाना।। ऋषि-मुनियों की भूमि यहाँ पर, पग-पग अविजित नय हो। जाति-धर्म भी… Continue reading मातृभूमि तेरी जय हो / संतोष कुमार सिंह

चोरिका / संतोष कुमार चतुर्वेदी

माँ बताती थी हमें अक्सर यह बात कि प्यास को महसूसने वाले ही जानते है प्यास की महत्ता को भूख का दंश भुगतने वाले ही पहचानते हैं अनाज के मर्म को बाकी तो महज लफ्फाजी करते हैं माँ भूख-प्यास के सरगम से वाकिफ थी भलीभांति इसलिए उसने नखलिस्तान की दुर्गम लय पर गाना सीखा था… Continue reading चोरिका / संतोष कुमार चतुर्वेदी

परिवहन निगम की बस में सांसद-विधायक सीट / संतोष कुमार चतुर्वेदी

परिवहन निगम की बस में यात्रा करते हुए आपने भी देखा होगा कि एक समूची सीट के उपर दर्ज होता है यह ‘माननीय सांसद / विधायक के लिए’ इतने दिनों की यात्रा में मुझे कभी नहीं दिखाई पड़े कोई माननीय बस में अपने लिए आरक्षित सीट पर बैठ कर यात्रा करते हुए परिचितों ने भी… Continue reading परिवहन निगम की बस में सांसद-विधायक सीट / संतोष कुमार चतुर्वेदी