सर्वार्पण / संतलाल करुण

हे परमेश्वर ! अपने समान तन-मन, बल-बुद्धि ज्ञान-विवेक, दृष्टि-दर्शन अपने समान हाथ-पाँव, गुण-धर्म ध्वंस-निर्माण का पुरुषार्थ तुमने ही दिया । तुमने ही दिया अपने जैसा हृदय, वेदना वैसी ही भावना, अनुभूति शब्द, वाणी, रोदन-हास्य श्रवण-कथन का माधुर्य वेद-पुराण, गीता-गायत्री । तुमने ही तो दिया कर्मक्षेत्र अपनी तरह बहुरूप कर्त्ता-धर्ता बनाया कर्मफल दिए मधुर-विषाक्त आकर्ष-विकर्ष दिया… Continue reading सर्वार्पण / संतलाल करुण

पूर्वापर : आत्म से परात्म की ओर / संतलाल करुण

काव्यशास्त्र की समस्त अवधारणाएँ समय की सामर्थ्य से पराभूत रही हैं | विषय, विषयी और प्रतिविषयी सब समय के आवेग में अपनी तितीर्षा पूरी करते रहे हैं और उन सब के समानान्तर शास्त्रीय मानदण्ड भी अपना स्वरूप परिवर्तित करता रहा है | फिर भी युग-युगीन शास्त्रीय निष्कर्षों के विभिन्न अभिमत इस तथ्य पर अधिकतर एकजुट… Continue reading पूर्वापर : आत्म से परात्म की ओर / संतलाल करुण