कल जो कहते रहे आएंगे न जाने वाले / सतीश शुक्ला ‘रक़ीब’

कल जो कहते रहे आएंगे न जाने वाले मुन्तज़िर वो भी हैं, वो आज हैं आने वाले बेस क़ीमत है यहाँ बूँद भी इक पानी की याद रक्खें इसे, बेवज़ह बहाने वाले शम्स ता क़मर, ज़मीं, झील कि दरिया, पर्वत हैं मनाज़िर ये सभी दिल को लुभाने वाले कुछ नहीं बदला है क्या?, हाँ! तो… Continue reading कल जो कहते रहे आएंगे न जाने वाले / सतीश शुक्ला ‘रक़ीब’

बेवफ़ाई का सिला भी जो वफ़ा देते हैं / सतीश शुक्ला ‘रक़ीब’

बेवफ़ाई का सिला भी जो वफ़ा देते हैं अपनी फ़ितरत का ज़माने को पता देते हैं आप बाहोश रहें सोच-समझ कर बोलें तल्ख़ जुमले भी यहां आग लगा देते हैं आह मजलूम की मुंसिफ़ को न जीने देगी गर वो नाक़र्दा गुनाहों की सज़ा देते हैं देर से जाऊँगा दफ़्तर तो कटेगी तनख़्वाह वो इसी… Continue reading बेवफ़ाई का सिला भी जो वफ़ा देते हैं / सतीश शुक्ला ‘रक़ीब’

एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमसान / सतीश बेदाग़

एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमासान दूर तक देख समन्दर में उठा है तूफ़ान एक लड़की थी सिखाती थी जो खिलकर हँसना आज याद आई है, तो हो आई है सीली मुस्कान एक वो मेला, वो झूला, वो मिरे संग तस्वीर क्या पता ख़ुश भी कहीं है, कि नहीं वो नादान फिर से बचपन… Continue reading एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमसान / सतीश बेदाग़

अन्दर ऊँची ऊँची लहरें उठती हैं / सतीश बेदाग़

अन्दर ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं काग़ज़ के साहिल पे कहाँ उतरती हैं माज़ी की शाखों से लम्हे बरसते हैं ज़हन के अन्दर तेज़ हवाएँ चलती हैं आँखों को बादल बारिश से क्या लेना ये गलियां अपने पानी से भरती हैं बाढ़ में बह जाती हैं दिल की दीवारें तब आँखों से इक दो बूंदें झरती… Continue reading अन्दर ऊँची ऊँची लहरें उठती हैं / सतीश बेदाग़

कारट के फूल / सतीश चौबे

कारट के फूल वहाँ गिरते तो होंगे ना। शाम की सलामी का बिगुल मर गए किसी सोल्जर की याद दिलाता बजता तो होगा वहाँ। मेहंदी की डालें कट तो चुकी होंगी जलाने के लिए और शाम से पहले ही ढलाव उतरती सर्द हवा आती तो होगी ना। कारट के फूलों के महक भरे भाव और… Continue reading कारट के फूल / सतीश चौबे

रोशन हाथों की दस्तकें / सतीश चौबे

प्राची की सांझ और पश्चिम की रात इनकी वय:संधि का जश्न है आज मज़ारों पर चिराग बालने वाले हाथ (जो शायद किसी रुह के ही हों) ठहर जाएँ। नदियों पर दिये बहाने वाले हाथ (जो शायद किसी नववधू के ही हों) ठहर जाएँ। और खानों में लालटेनें ले जाने वाले हाथ (जो शायद किसी मज़दूर… Continue reading रोशन हाथों की दस्तकें / सतीश चौबे

हमारे दिल की मत पूछो बड़ी मुश्किल में रहता है / सतपाल ‘ख़याल’

हमारे दिल की मत पूछो, बड़ी मुश्किल में रहता है हमारी जान का का दुश्मन हमारे दिल में रहता है कोई शाइर बताता है, कोई कहता है दीवाना मेरा चर्चा हमेशा आपकी महफिल में रहता है कभी मंदिर, कभी मस्जिद, कभी सहरा, कभी परबत उसी को खोजते हैं सब जो सबके दिल में रहता है… Continue reading हमारे दिल की मत पूछो बड़ी मुश्किल में रहता है / सतपाल ‘ख़याल’

जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़/ सतपाल ‘ख़याल’

जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़ ख़ुद ही तूफ़ाँ ले गया कश्ती को साहिल की तरफ़ बिजलियाँ चमकीं तो हमको रास्ता दिखने लगा हम अँधेरे में बढ़े ऐसे भी मंज़िल की तरफ़् क्या जुनूँ पाला है लहरों ने अजब पूछो इन्हें क्यों चली हैं शौक़ से मिटने ये साहिल की तरफ़ फ़ैसला… Continue reading जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़/ सतपाल ‘ख़याल’

गलियाँ झाकीं सड़कें छानी दिल की वहशत कम न हुई / सज्जाद बाक़र रिज़वी

गलियाँ झाकीं सड़कें छानी दिल की वहशत कम न हुई आँख से कितना लावा उबला तन की हिद्दत कम न हुई ढब से प्यार किया है हम ने उस के नाम पे चुप न हुए शहर के इज़्ज़त-दारों में कुछ अपनी इज्जत कम न हुई मन-धन सब क़ुर्बान किया अब सर का सौदा बाक़ी है… Continue reading गलियाँ झाकीं सड़कें छानी दिल की वहशत कम न हुई / सज्जाद बाक़र रिज़वी

अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही / सज्जाद बाक़र रिज़वी

अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही तुम भी रूठे जग भी रूठा ये भी वक़्त की बात रही प्यार के खेल में दिल के मालिक हम तो सब कुछ खो बैठे अक्सर तुम से शर्त लगी है अक्सर अपनी मात रही लाख दिए दुनिया ने चरके लाख लगे दिल पर पहरे… Continue reading अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही / सज्जाद बाक़र रिज़वी