उदास रातों में तेज़ काफ़ी की तल्ख़ियों में / वसी शाह

उदास रातों में तेज़ काफ़ी की तल्ख़ियों में वो कुछ ज़ियादा ही याद आता है सर्दियों में मुझे इजाज़त नहीं है उस को पुकारने की जो गूँजता है लहू में सीने की धड़कनों में वो बचपना जो उदास राहों में खो गया था मैं ढूँढता हूँ उसे तुम्हारी शरारतों में उसे दिलासे तो दे रहा… Continue reading उदास रातों में तेज़ काफ़ी की तल्ख़ियों में / वसी शाह

Published
Categorized as Wasi Shah

आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ / वसी शाह

आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ काँधों पे ग़म की शाल है और चाँद रात है दिल तोड़ के ख़मोश नज़ारों का क्या मिला शबनम का ये सवाल है और चाँद रात है कैम्पस की नहर पर है तिरा हाथ हाथ में मौसम भी ला-ज़वाल है और चाँद रात है हर इक कली… Continue reading आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ / वसी शाह

Published
Categorized as Wasi Shah

एक बीती हुई रात को याद करते हुए / वसंत त्रिपाठी

रात तुम लौट गई चुपचाप मुझे अकेला, निस्संग छोड़ कर भर कर प्यार की कई-कई स्मृतियाँ तुममें हिचकोले खाता हुआ मैंने चूमा पत्नी का माथा होंठों पर एक भरपूर चुम्बन अंधेरे में टटोलते हुए किया समूचे शरीर का स्पर्श रात, जब तुम गहरा रही थी मैं प्यार की दैहिक-क्रिया में लीन था असंख्य लहरों पर… Continue reading एक बीती हुई रात को याद करते हुए / वसंत त्रिपाठी

सेल्फ़ पोर्ट्रेट / वसंत त्रिपाठी

यह जो कटा-फटा-सा कच्चा-कच्चा और मासूम चेहरा है उसे ज़माने की भट्ठी ने ख़ूब-ख़ूब तपाया है केवल आरामशीन नहीं चली लेकिन हड्डियों और दिल को ठंड ने अमरूद की फाँकों-सा चीर दिया है असमय इस चेहरे से रुलाई फूटती है दरअसल ट्रेन की खिड़की-सा हो गया है चेहरा जिसके भीतर से आँखें दृश्यों को छूते… Continue reading सेल्फ़ पोर्ट्रेट / वसंत त्रिपाठी

दिल को लगती है / वली दक्कनी

दिल को लगती है दिलरुबा की अदा जी में बसती है खुश-अदा की अदा गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा हर्फ़-ए-बेजा बजा है गर बोलूँ दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा नक़्श-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़ हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा गुल हुये ग़र्क आब-ए-शबनम में देख उस साहिब-ए-हया की… Continue reading दिल को लगती है / वली दक्कनी

याद करना हर घडी़ उस यार का / वली दक्कनी

याद करना हर घड़ी उस यार का है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नहीं तिश्नालब हूँ शर्बत-ए-दीदार का आकबत क्या होवेगा मालूम नहीं दिल हुआ है मुब्तिला दिलदार का क्या कहे तारीफ़ दिल है बेनज़ीर हर्फ़ हर्फ़ उस मख़्ज़न-ए-इसरार का गर हुआ है तालिब-ए-आज़ादगी बन्द मत हो सुब्बा-ओ-ज़ुन्नार का मस्नद-ए-गुल मन्ज़िल-ए-शबनम हुई देख रुत्बा दीदा-ए-बेदार… Continue reading याद करना हर घडी़ उस यार का / वली दक्कनी

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत / वली ‘उज़लत’

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत पनाह अपना करूँ क्या है यही चाक-ए-गिरेबाँ दस्त-गाह अपना टपकती जो तरह सुम्बुल से होवे पै-ब-पै शबनम हमारे हाल पर रोने लगा अब दूद-ए-आह अपना मेरा दिल लेते ही कर चश्म-पोशी मुझ से मुँह फेरा नज़र आता नहीं कुछ मुझ को दिल-बर से निबाह अपना सितम से दी तसल्ली इस… Continue reading बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत / वली ‘उज़लत’

Published
Categorized as Wali Uzlat

आज दिल बे-क़रार है मेरा / वली ‘उज़लत’

आज दिल बे-क़रार है मेरा किस के पहलू में यार है मेरा क्यूँ न उश्शाक़ पर होऊँ मंसूर जूँ सिपंद आह दार है मेरा बे-क़रार उस का हूँगा हश्र में भी यही उस से क़रार है मेरा रंग-ए-ज़र्द और सरिश्क-ए-सुर्ख़ तो देख क्या ख़िज़ाँ में बहार है मेरा मेरे क़ातिल के कफ़ हिनाई नहीं मुश्त-ए-ख़ूँ… Continue reading आज दिल बे-क़रार है मेरा / वली ‘उज़लत’

Published
Categorized as Wali Uzlat

मुझको घर-बार बुलाती हैं वो बूढ़ी आँखें / वर्षा सिंह

मुझको घर-बार बुलाती हैं वो बूढ़ी आँखें । दे के थपकी-सी सुलाती हैं वो बूढ़ी आँखें । जब कभी पाँव में चुभ जाते हैं काँटे मेरे बोझ पीड़ा का उठाती हैं वो बूढ़ी आँखें । वही चौपाई, वही कलमा, वही हैं वाणी अक्स जन्नत का दिखाती हैं वो बूढ़ी आँखें । कौन कहता है कि… Continue reading मुझको घर-बार बुलाती हैं वो बूढ़ी आँखें / वर्षा सिंह

जाने किसकी राह देखतीं, आस भरी बूढ़ी आँखें / वर्षा सिंह

जाने किसकी राह देखतीं, आस भरी बूढ़ी आँखें । इंतज़ार की पीड़ा सहतीं, रात जगी बूढ़ी आँखें । दुनिया का दस्तूर निराला, स्वारथ के सब मीत यहाँ फ़र्क नहीं कर पातीं कुछ भी, नेह पगी बूढ़ी आँखें । आते हैं दिन याद पुराने, अच्छे-बुरे, खरे-खोटे, यादों में डूबी-उतरातीं, बंद-खुली बूढ़ी आँखें । मंचित होतीं युवा… Continue reading जाने किसकी राह देखतीं, आस भरी बूढ़ी आँखें / वर्षा सिंह