नैन चकोर, मुखचंद ँकौं वारि डारौं, वारि डारौं चित्तहिं मनमोहन चितचोर पै। प्रानहूँ को वारि डारौं हँसन दसन लाल, हेरन कुटिलता और लोचन की कोर पैर। वारि डारौं मनहिं सुअंग अंग स्यामा-स्याम, महल मिलाप रस रास की झकोर पै। अतिहिं सुघर बर सोहत त्रिभंगी-लाल, सरबस वारौं वा ग्रीवा की मरोर पै॥
दोहे / ललित किशोरी
सुमन वाटिका-विपिन में, ह्वैहौं कब मैं फूल। कोमल कर दोउ भावते, धरिहैं बीनि दुकूल॥ कब कालीदह कूल की, ह्वैहौ त्रिबिध समीर। जुगल अंग-ऍंग लागिहौं, उडिहै नूतन चीर॥ कब कालिंदी कूल की, ह्वैहौं तरुवर डारि। ‘ललित किसोरी’ लाडिले, झूलैं झूला डारि॥
ताश का खेल-2 / ललन चतुर्वेदी
एक दिन जोकर ने तोड़ी सदियों की अपनी चुप्पी सारे पत्ते हो गए स्तब्ध, अवाक सुनकर उसकी मांग– ‘मुझे भी मुख्य धारा में शामिल करो, कब तक मुझे रखोगे अलग-थलग तुम जो कर सकते हो क्या वह मैं नहीं कर सकता हर जगह बख़ूबी मैं अपनी भूमिका निभाने लगा हूँ सभ्यों की महफ़िल में आने-जाने… Continue reading ताश का खेल-2 / ललन चतुर्वेदी
ताश का खेल-1 / ललन चतुर्वेदी
दहले को दहला देता है ग़ुलाम ग़ुलाम की सिट्टी-पिट्टी ग़ुम कर देती है बेगम नज़रें झुका लेती है बेगम बादशाह के सामने हद तो तब हो जाती है जब सब पर भारी हो जाता है एक्का लेकिन वह भी हो जाता है बेरंग रंग की दुग्गी के सामने सदियों से हम खेल रहे हैं यही… Continue reading ताश का खेल-1 / ललन चतुर्वेदी
अजब नजारे / लता पंत
हवा चल रही तेज बड़ी थी, एक खटइया कहीं पड़ी थी! उड़ी खटइया आसमान में, फिर मच्छर के घुसी कान में! वहीं खड़ा था काला भालू, बैठ खाट पर बेचे आलू। आलू में तो छेद बड़ा था, शेर वहाँ पर तना खड़ा था! लंबी पूँछ लटकती नीचे, झटका दे-दे मुनिया खींचे! खिंची पूँछ तो गिरा… Continue reading अजब नजारे / लता पंत
साँझ ही सोँ रंगरावटी मेँ मधुरे सुर मोदन गाय रही हैँ / लछिराम
साँझ ही सोँ रंगरावटी मेँ मधुरे सुर मोदन गाय रही हैँ । सांवरे रावरे की मुसकानि कला कहिकै ललचाय रही हैँ । लालसा मे लछिराम निहोरि अबै कर जोरि बुलाय राही हैं । बैँजनी सारी के भीतर मेँ पग पैँजनी बजाय रही हैँ ।
नाम बिन भाव करम नहिं छूटै / दरिया साहब
नाम बिन भाव करम नहिं छूटै। साध संग औ राम भजन बिन, काल निरंतर लूटै॥ मल सेती जो मलको धोवै, सो मल कैसे छूटै॥ प्रेम का साबुन नाम का पानी, दोय मिल ताँता टूटै॥ भेद अभेद भरम का भाँडा, चौडे पड-पड फूटै॥ गुरु मुख सबद गहै उर अंतर, सकल भरम के छूटै॥ राम का ध्यान… Continue reading नाम बिन भाव करम नहिं छूटै / दरिया साहब
साखी / दरिया साहब
दरिया लच्छन साध का, क्या गिरही क्या भेख। नि:कपटी निरसंक रहि, बाहर भीतर एक॥ कानों सुनी सो झूठ सब, ऑंखों देखी साँच। दरिया देखे जानिए, यह कंचन यह काँच॥ पारस परसा जानिए, जो पलटै ऍंग-अंग। अंग-अंग पलटै नहीं, तौ है झूठा संग॥ बड के बड लागै नहीं, बड के लागै बीज। दरिया नान्हा होयकर, रामनाम… Continue reading साखी / दरिया साहब
साखी / दयाबाई
कं धरत पग, परत कहुं, उमगि गात सब देह। दया मगन हरि रूप में, दिन-दिन अधिक सनेह॥ प्रेम मगन जे साध गन, तिन मति कही न जात। रोय-रोय गावत हंसत, दया अटपटी बात॥ दया कह्यो गुरदेव ने, कूरम को व्रत लेहि। सब इद्रिन कूं रोक करि, सुरत स्वांस में देहि॥ बिन रसना बिन मालकर, अंतर… Continue reading साखी / दयाबाई
गीत-2 / दयानन्द पाण्डेय
तिनका-तिनका डूब गया अफवाही बाढ़ में इस लिए मेंहदी नहीं रचेंगी भौजी भरे अषाढ़ में दीवारों की देह हो गई सारी काली-काली हमरो गांव में आ गई अब की दुई-चार दुनाली किसी गरीब को फिर मारा है रोटी, सब्जी, दाल ने पीपल के पातों पर इसी लिए अब की नहीं बही पुरवाई चुप-चुप सहमी-सहमी है… Continue reading गीत-2 / दयानन्द पाण्डेय