दोहे / ललित किशोरी

सुमन वाटिका-विपिन में, ह्वैहौं कब मैं फूल।
कोमल कर दोउ भावते, धरिहैं बीनि दुकूल॥

कब कालीदह कूल की, ह्वैहौ त्रिबिध समीर।
जुगल अंग-ऍंग लागिहौं, उडिहै नूतन चीर॥

कब कालिंदी कूल की, ह्वैहौं तरुवर डारि।
‘ललित किसोरी’ लाडिले, झूलैं झूला डारि॥