साँझ ही सोँ रंगरावटी मेँ मधुरे सुर मोदन गाय रही हैँ । सांवरे रावरे की मुसकानि कला कहिकै ललचाय रही हैँ । लालसा मे लछिराम निहोरि अबै कर जोरि बुलाय राही हैं । बैँजनी सारी के भीतर मेँ पग पैँजनी बजाय रही हैँ ।
साँझ ही सोँ रंगरावटी मेँ मधुरे सुर मोदन गाय रही हैँ । सांवरे रावरे की मुसकानि कला कहिकै ललचाय रही हैँ । लालसा मे लछिराम निहोरि अबै कर जोरि बुलाय राही हैं । बैँजनी सारी के भीतर मेँ पग पैँजनी बजाय रही हैँ ।