साखी / दयाबाई

कं धरत पग, परत कहुं, उमगि गात सब देह। दया मगन हरि रूप में, दिन-दिन अधिक सनेह॥ प्रेम मगन जे साध गन, तिन मति कही न जात। रोय-रोय गावत हंसत, दया अटपटी बात॥ दया कह्यो गुरदेव ने, कूरम को व्रत लेहि। सब इद्रिन कूं रोक करि, सुरत स्वांस में देहि॥ बिन रसना बिन मालकर, अंतर… Continue reading साखी / दयाबाई

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