एक दिन जोकर ने तोड़ी सदियों की अपनी चुप्पी सारे पत्ते हो गए स्तब्ध, अवाक सुनकर उसकी मांग– ‘मुझे भी मुख्य धारा में शामिल करो, कब तक मुझे रखोगे अलग-थलग तुम जो कर सकते हो क्या वह मैं नहीं कर सकता हर जगह बख़ूबी मैं अपनी भूमिका निभाने लगा हूँ सभ्यों की महफ़िल में आने-जाने… Continue reading ताश का खेल-2 / ललन चतुर्वेदी
Category: Lalan Chaturvedi
ताश का खेल-1 / ललन चतुर्वेदी
दहले को दहला देता है ग़ुलाम ग़ुलाम की सिट्टी-पिट्टी ग़ुम कर देती है बेगम नज़रें झुका लेती है बेगम बादशाह के सामने हद तो तब हो जाती है जब सब पर भारी हो जाता है एक्का लेकिन वह भी हो जाता है बेरंग रंग की दुग्गी के सामने सदियों से हम खेल रहे हैं यही… Continue reading ताश का खेल-1 / ललन चतुर्वेदी