नैन चकोर, मुखचंद कौं वारि डारौं / ललित किशोरी

नैन चकोर, मुखचंद ँकौं वारि डारौं, वारि डारौं चित्तहिं मनमोहन चितचोर पै। प्रानहूँ को वारि डारौं हँसन दसन लाल, हेरन कुटिलता और लोचन की कोर पैर। वारि डारौं मनहिं सुअंग अंग स्यामा-स्याम, महल मिलाप रस रास की झकोर पै। अतिहिं सुघर बर सोहत त्रिभंगी-लाल, सरबस वारौं वा ग्रीवा की मरोर पै॥

दोहे / ललित किशोरी

सुमन वाटिका-विपिन में, ह्वैहौं कब मैं फूल। कोमल कर दोउ भावते, धरिहैं बीनि दुकूल॥ कब कालीदह कूल की, ह्वैहौ त्रिबिध समीर। जुगल अंग-ऍंग लागिहौं, उडिहै नूतन चीर॥ कब कालिंदी कूल की, ह्वैहौं तरुवर डारि। ‘ललित किसोरी’ लाडिले, झूलैं झूला डारि॥