गीत-2 / दयानन्द पाण्डेय

तिनका-तिनका डूब गया अफवाही बाढ़ में इस लिए मेंहदी नहीं रचेंगी भौजी भरे अषाढ़ में दीवारों की देह हो गई सारी काली-काली हमरो गांव में आ गई अब की दुई-चार दुनाली किसी गरीब को फिर मारा है रोटी, सब्जी, दाल ने पीपल के पातों पर इसी लिए अब की नहीं बही पुरवाई चुप-चुप सहमी-सहमी है… Continue reading गीत-2 / दयानन्द पाण्डेय

गीत-1 / दयानन्द पाण्डेय

बंसवाड़ी में बांस नहीं है चेहरे पर अब मांस नहीं है कैसे दिन की दूरी नापें पांवों पर विश्वास नहीं है। इन की उन की अंगुली चाटी दोपहरी की कतरन काटी उमड़-घुमड़ सपने बौराए जैसे कोड़ें बंजर माटी ज़ज़्बाती मसलों पर अब तो कतरा भर विश्वास नहीं है। शाम गुज़ारी तनहाई में पूंछ डुलाई बेगारी… Continue reading गीत-1 / दयानन्द पाण्डेय