किसी भी आने-जाने वाले के हाथ माँ भेजती रहती है कुछ न कुछ आज भी घर से आई हैं ढेर सौगात प्यार में पगे शकरपारे लाड़ की झिड़की जैसी नमकीन मठरियाँ भेज दी हैं कुछ किताबें भी जो छूट गई थीं पिछली दफ़ा काग़ज़ के छोटे टुकड़े पर पिता ने लिख भेजी हैं कुछ नसीहतें… Continue reading चिन्ता / आकांक्षा पारे
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प्रेम / आकांक्षा पारे
जो कहते हैं प्रेम पराकाष्ठा है वे ग़लत हैं जो कहते हैं प्रेम आंदोलन है वे ग़लत हैं जो कहते हैं प्रेम समर्पण है वे भी ग़लत हैं जो कहते हैं प्रेम पागलपन है वे भी इसे समझ नहीं पाए प्रेम इनमें से कुछ भी नहीं है प्रेम एक समझौता है जो दो लोग आपस… Continue reading प्रेम / आकांक्षा पारे
बदलती परिभाषा / आकांक्षा पारे
बचपन में कहती थी माँ प्यार नहीं होता हँसी-खेल वह पनपता है दिल की गहराई में रोंपे गए उस बीज से जिस पर पड़ती है आत्मीयता की खाद होता है विचारों का मेल। साथ ही समझाती थी माँ प्रेम नहीं होता गुनाह कभी वह हो सकता है कभी भी उसके लिए नहीं होते बंधन न… Continue reading बदलती परिभाषा / आकांक्षा पारे
असफल प्रयास / आकांक्षा पारे
तुम्हें भूलने की कोशिश के साथ लौटी हूँ इस बार मगर तुम्हारी यादें चली आई हैं सौंधी खुश्बू वाली मिट्टी साथ चली आती है जैसे तलवों में चिपक कर पतलून के मोड़ में दुबक कर बैठी रेत की तरह साथ चले आए हैं तुम्हारे स्मृतियों के मोती।
नासमझी / आकांक्षा पारे
मेरे कहने तुम्हारे समझने के बीच कब फ़ासला बढ़ता गया मेरे हर कहने का अर्थ बदलता रहा तुम तक जा कर हर दिन समझने-समझाने का यह खेल हम दोनों को ही अब बना गया है इतना नासमझ कि स्पर्श के मायने की परिभाषा एक होने पर भी नहीं समझते उसे हम दोनों
प्रार्थना / आकांक्षा पारे
करती हूँ कोशिश निकाल सकूँ मन से तुम्हें न जाने कब यादें बन जाती हैं तुम्हारी ख़ुशी के गीत। घोर निराशा के क्षण में रीते मन के साथ संघर्ष की पगडंडियों पर चुभता है असफलता का कोई काँटा अचानक उसी क्षण जान नहीं पाती कैसे यादें बन जाती हैं तुम्हारी धैर्य के पल। डबडबाई आँखों… Continue reading प्रार्थना / आकांक्षा पारे
तस्वीरें / आकांक्षा पारे
कुछ न कह कर भी बहुत कुछ कह डालती हैं उनमें दिखाई नहीं पड़ती मन की उलझनें, चेहरे की लकीरें फिर भी वे सहेजी जाती हैं एक अविस्मरणीय दस्तावेज़ के रूप में ऐसी ही तुम्हारी एक तस्वीर सहेज रखी है मैंने मैं चाहती हूँ उभर आएँ उस पर तुम्हारे मन की उलझनें, चेहरे की लकीरें… Continue reading तस्वीरें / आकांक्षा पारे
स्मृति लोप / अग्निशेखर
तरह-तरह से आ रही थी मृत्यु ख़त्म हो रही थीं चीज़ें गायब हो रही थीं स्मृतियाँ पेड़ों से झर रहे थे नदी में पत्ते और हम धो रहे थे हाथ मरते जा रहे थे हमारे पूर्वज दूषित हो रही थीं भाषाएँ हमारे सम्वाद प्रतिरोध उतर चुके थे जैसे दिमाग़ से हम डूब रहे थे तुच्छताओं… Continue reading स्मृति लोप / अग्निशेखर
कवि और खजुराहो / अग्निशेखर
लहकती सरसों और आम्र-मंजरियों से होकर हमने मोटरबाईक पर दौड़ते छोड़ दिए पीछे गाय-बकरियों को चराते लोग खेत काटतीं पसीना पोंछतीं स्त्रियाँ पलाश की दहकती झाड़ियों और बासों के झुरमुट से होकर हम आम के बौर सूँघते पहुँचे खजुराहो हम जिन्हें रास्ते भर छोड़ आए थे पीछे रोज़मर्रा की दुनिया में निमग्न वे हमसे पहले… Continue reading कवि और खजुराहो / अग्निशेखर
कांगड़ी / अग्निशेखर
जाड़ा आते ही वह उपेक्षिता पत्नी सी याद आती है अरसे के बाद हम घर के कबाड़ से उसे मुस्कान के साथ निकाल लाते हैं कांगड़ी उस समय अपना शाप मोचन हुआ समझती है उस की तीलियों से बुनी देह की झुर्रियों में समय की पड़ी धूल हम फूँक कर उड़ाते हैं ढीली तीलियों में… Continue reading कांगड़ी / अग्निशेखर