मेरे कहने
तुम्हारे समझने के बीच
कब फ़ासला बढ़ता गया
मेरे हर कहने का अर्थ
बदलता रहा तुम तक जा कर
हर दिन
समझने-समझाने का यह खेल
हम दोनों को ही अब
बना गया है इतना नासमझ
कि
स्पर्श के मायने की
परिभाषा एक होने पर भी
नहीं समझते उसे
हम दोनों
मेरे कहने
तुम्हारे समझने के बीच
कब फ़ासला बढ़ता गया
मेरे हर कहने का अर्थ
बदलता रहा तुम तक जा कर
हर दिन
समझने-समझाने का यह खेल
हम दोनों को ही अब
बना गया है इतना नासमझ
कि
स्पर्श के मायने की
परिभाषा एक होने पर भी
नहीं समझते उसे
हम दोनों