क्या करूंगी मैं / आकांक्षा पारे

देहरी पर आती पीली धूप के ठीक बीच खड़े थे तुम प्रखर रश्मियों के बीच कोई न समझ सका था तुम्हारा प्रेम पूरे आंगन में, बिखरी पड़ी थी तुम्हारी याचना, पिता का क्रोध भाई की अकड़ माँ के आँसू शाम बुहारने लगी जब दालान मैंने चुपके से समेट लिया गुनगुनी धूप का वो टुकड़ा क़ैद… Continue reading क्या करूंगी मैं / आकांक्षा पारे

ख़ौफ़ / आकांक्षा पारे

मैं नहीं डरती मौत से न डराता है मुझे उसका ख़ौफ़ मैं नहीं डरती उसके आने के अहसास से न डराते हैं मुझे उसके स्वप्न मैं डरती हूं उस सन्नाटे से जो पसरता है घर से ज़्यादा दिलों पर डरती हूँ उन आँसुओं से जो दामन से ज़्यादा भिगोते हैं मन डरती हूँ माँ के… Continue reading ख़ौफ़ / आकांक्षा पारे

अनंत यात्रा / आकांक्षा पारे

अपनी कहानियों में मैंने उतारा तुम्हारे चरित्र को उभार नहीं पाई उसमें तुम्हारा व्यक्तित्व। बांधना चाहा कविताओं में रूप तुम्हारा पर शब्दों के दायरे में न आ सका तुम्हारा मन इस बार रंगों और तूलिका से उकेर दी मैंने तुम्हारी देह असफलता ही मेरी नियति है तभी सूनी है वह तुम्हारी आत्मा के बिन

बित्ते भर की चिंदी / आकांक्षा पारे

पीले पड़ गए उन पन्नों पर सब लिखा है बिलकुल वैसा ही कागज़ की सलवटों के बीच बस मिट गए हैं कुछ शब्द। अस्पष्ट अक्षरों को पढ़ सकती हूं बिना रूके आज भी बित्ते भर की चिंदी में समाई हुई हूँ मैं। अनगढ़ लिखावट से लिखी गई है एक अल्हड़ प्रणय-गाथा उसमें मौज़ूद है सांझे… Continue reading बित्ते भर की चिंदी / आकांक्षा पारे

घर संभालती स्त्री / आकांक्षा पारे

गुस्सा जब उबलने लगता है दिमाग में प्रेशर कुकर चढ़ा देती हूँ गैस पर भाप निकलने लगती है जब एक तेज़ आवाज़ के साथ ख़ुद-ब-ख़ुद शांत हो जाता है दिमाग पलट कर जवाब देने की इच्छा पर पीसने लगती हूँ, एकदम लाल मिर्च पत्थर पर और रगड़ कर बना देती हूँ स्वादिष्ट चटनी जब कभी… Continue reading घर संभालती स्त्री / आकांक्षा पारे

मुक्ति पर्व / आकांक्षा पारे

तुम हमारे परिवार के मुखिया हो तुम्हारा लाया हुआ धन मुहैया कराता है हमें अन्न। तुम हो तो हम नहीं कहलातीं हैं अनाथ रिश्तेदारों का आना-जाना त्योहारों पर पकवानों का महकना हमारी माँ का गहना सब तुम्ही हो। तुम हो तो सजता है माँ के माथे सिंदूर तुम हो तो ही वह कर पाती है… Continue reading मुक्ति पर्व / आकांक्षा पारे

ईश्वर / आकांक्षा पारे

ईश्वर, सड़क बुहारते भीखू से बचते हुए बिलकुल पवित्र पहुँचती हूं तुम्हारे मंदिर में ईश्वर जूठन साफ़ करती रामी के बेटे की नज़र न लगे इसलिए आँचल से ढक कर लाती हूँ तुम्हारे लिए मोहनभोग की थाली ईश्वर दो चोटियां गूँथे रानी आ कर मचले उससे पहले तुम्हारे श्रृंगार के लिए तोड़ लेती हूँ बगिया… Continue reading ईश्वर / आकांक्षा पारे

टुकड़ों में भलाई / आकांक्षा पारे

हर जगह मचा है शोर ख़त्म हो गया है अच्छा आदमी रोज़ आती हैं ख़बरें अच्छे आदमी का साँचा बेच दिया है ईश्वर ने कबाड़ी को ‘अच्छे आदमी होते कहाँ हैं का व्यंग्य मारने से चूकना नहीं चाहता कोई एक दिन विलुप्त होते भले आदमी ने खोजा उस कबाड़ी को और मांग की उस साँचे… Continue reading टुकड़ों में भलाई / आकांक्षा पारे

इस बार / आकांक्षा पारे

इस बार मिलने आओ तो फूलों के साथ र्दद भी लेते आना बांटेंगे, बैठकर बतियाएंगे मैं भी कह दूंगी सब मन की। इस बार मिलने आओ तो जूतों के साथ तनाव भी बाहर छोड़ आना मैं कांधे पे तुम्हारे रखकर सिर सुनाऊंगी रात का सपना। इस बार मिलने आओ तो आने की मुश्किलों के साथ… Continue reading इस बार / आकांक्षा पारे

औरत के शरीर में लोहा / आकांक्षा पारे

औरत लेती है लोहा हर रोज़ सड़क पर, बस में और हर जगह पाए जाने वाले आशिकों से उसका मन हो जाता है लोहे का बचनी नहीं संवेदनाएँ बड़े शहर की भाग-दौड़ के बीच लोहे के चने चबाने जैसा है दफ़्तर और घर के बीच का संतुलन कर जाती है वह यह भी आसानी से… Continue reading औरत के शरीर में लोहा / आकांक्षा पारे