जो पर्दो में ख़ुद को छुपाए हुए हैं क़यामत वही तो उठाए हुए हैं तिरी अंजुमन में जो आए हुए हैं ग़म-ए-दो-जहाँ को भुलाए हुए हैं कोई शाम के वक़्त आएगा लेकिन सहर से हम आँखें बिछाए हुए हैं जहाँ बिजलियाँ ख़ुद अमाँ ढूँडती हैं वहाँ हम नशेमन बनाए हुए हैं ग़ज़ल आबरू है तो… Continue reading जो पर्दो में ख़ुद को छुपाए हुए हैं / ‘हफ़ीज़’ बनारसी
जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है / ‘हफ़ीज़’ बनारसी
जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है रात होती है मगर दिन का यकीं होता है उफ वो बेदाद इनायत भी तसद्दुक जिस पर हाए वो ग़म जो मसर्रत से हसीं होता है हिज्र की रात फ़ुसूँ-कारी-ए-ज़ुल्मत मत पूछ शमअ् जलती है मगर नूर नहीं होता है दूर तक हम ने जो देखा तो ये… Continue reading जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है / ‘हफ़ीज़’ बनारसी
दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए / ‘हफ़ीज़’ बनारसी
दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए दौलत-ए-इश्क़ नहीं बाँध के रखने के लिए इस ख़जाने को जहाँ तक हो लुटाते रहिए ज़िंदगी भी किसी मेहबूब से कुछ कम तो नहीं प्यार है उस से तो फिर नाज़ उठाते रहिए ज़िंदगी दर्द की तस्वीर न बनने पाए बोलते रहिए… Continue reading दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए / ‘हफ़ीज़’ बनारसी
दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी
दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के तो पछताए बहुत हम तौबा कर के लिपट जाओ गले से वक़्त-ए-आखिर कि फिर जीता नहीं है कोई मर के वहाँ से आ के उस की भी फिरी आँख वो तेवर ही नहीं अब नामा-बर के कोई जब पूछता है हाल दिल का तो रो देते हैं हम… Continue reading दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी
बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी
बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है हाए क्या चीज़ ग़रीबुल-वतनी होती है नहीं मरते हैं तो ईज़ा नहीं झेली जाती और मरते हैं तो पैमाँ-शिकनी होती है दिन को इक नूर बरसता है मिरी तुर्बत पर रात को चादर-ए-महताब तनी होती है तुम बिछड़ते हो जो अब कर्ब न हो वो कम है… Continue reading बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी
बंदौं राधा-पद-कमल अमल सकल सुख-धाम / हनुमानप्रसाद पोद्दार
बंदौं राधा-पद-कमल अमल सकल सुख-धाम। जिन के परसन हित रहत लालाइत नित स्याम॥ जयति स्याम-स्वामिनि परम निरमल रस की खान। जिन पद बलि-बलि जात नित माधव प्रेम-निधान॥
श्रीराधारानी-चरन बिनवौं बारंबार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
श्रीराधारानी-चरन बिनवौं बारंबार। बिषय-बासना नास करि, करौ प्रेम-संचार॥ तुम्हरी अनुकंपा अमित, अबिरत अकल अपार। मोपर सदा अहैतुकी बरसत रहत उदार॥ अनुभव करवावौ तुरत, जाते मिटैं बिकार। रीझैं परमानंदघन मोपै नंदकुमार॥ पर्यौ रहौं नित चरन-तल, अर्यौ प्रेम-दरबार। प्रेम मिलै, मोय दुहुन के पद-कमलनि सुखसार॥
ख़ुद अपने ज़र्फ का / हनीफ़ साग़र
ख़ुद अपने ज़र्फ का अन्दाज़ा कर लिया जाए तुम्हारे नाम से इक जाम भर लिया जाए ये सोचता हूं कि कुछ काम कर लिया जाए मिले जो आईना तुझ-सा संवर लिया जाए तुम्हारी याद जहां आते-आते थक जाए तुम्ही बताओ कहा ऐसा घर लिया जाए तुम्हारी राह के काटे हो, गुल हो या पत्थर ये… Continue reading ख़ुद अपने ज़र्फ का / हनीफ़ साग़र
बात बनती नहीं / हनीफ़ साग़र
बात बनती नहीं ऐसे हालात में मैं भी जज़्बात में, तुम भी जज़्बात में कैसे सहता है मिलके बिछडने का ग़म उससे पूछेंगे अब के मुलाक़ात में मुफ़लिसी और वादा किसी यार का खोटा सिक्का मिले जैसे ख़ैरात में जब भी होती है बारिश कही ख़ून की भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में मुझको… Continue reading बात बनती नहीं / हनीफ़ साग़र
कहता हूँ मुहब्बत है ख़ुदा / हनीफ़ साग़र
कहता हूँ महब्बत है ख़ुदा सोच समझकर ये ज़ुर्म अगर है तो बता सोच समझकर कब की मुहब्बत ने ख़ता सोच समझकर कब दी ज़माने ने सज़ा सोच समझकर वो ख़्वाब जो ख़ुशबू की तरह हाथ न आए उन ख़्वाबों को आंखो में बसा सोच समझकर कल उम्र का हर लम्हा कही सांप न बन… Continue reading कहता हूँ मुहब्बत है ख़ुदा / हनीफ़ साग़र