दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी

दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के तो पछताए बहुत हम तौबा कर के लिपट जाओ गले से वक़्त-ए-आखिर कि फिर जीता नहीं है कोई मर के वहाँ से आ के उस की भी फिरी आँख वो तेवर ही नहीं अब नामा-बर के कोई जब पूछता है हाल दिल का तो रो देते हैं हम… Continue reading दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी

बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी

बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है हाए क्या चीज़ ग़रीबुल-वतनी होती है नहीं मरते हैं तो ईज़ा नहीं झेली जाती और मरते हैं तो पैमाँ-शिकनी होती है दिन को इक नूर बरसता है मिरी तुर्बत पर रात को चादर-ए-महताब तनी होती है तुम बिछड़ते हो जो अब कर्ब न हो वो कम है… Continue reading बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है / ‘हफ़ीज़’ जौनपुरी