ख़ुद अपने ज़र्फ का / हनीफ़ साग़र

ख़ुद अपने ज़र्फ का अन्दाज़ा कर लिया जाए तुम्हारे नाम से इक जाम भर लिया जाए ये सोचता हूं कि कुछ काम कर लिया जाए मिले जो आईना तुझ-सा संवर लिया जाए तुम्हारी याद जहां आते-आते थक जाए तुम्ही बताओ कहा ऐसा घर लिया जाए तुम्हारी राह के काटे हो, गुल हो या पत्थर ये… Continue reading ख़ुद अपने ज़र्फ का / हनीफ़ साग़र

बात बनती नहीं / हनीफ़ साग़र

बात बनती नहीं ऐसे हालात में मैं भी जज़्बात में, तुम भी जज़्बात में कैसे सहता है मिलके बिछडने का ग़म उससे पूछेंगे अब के मुलाक़ात में मुफ़लिसी और वादा किसी यार का खोटा सिक्का मिले जैसे ख़ैरात में जब भी होती है बारिश कही ख़ून की भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में मुझको… Continue reading बात बनती नहीं / हनीफ़ साग़र

कहता हूँ मुहब्बत है ख़ुदा / हनीफ़ साग़र

कहता हूँ महब्बत है ख़ुदा सोच समझकर ये ज़ुर्म अगर है तो बता सोच समझकर कब की मुहब्बत ने ख़ता सोच समझकर कब दी ज़माने ने सज़ा सोच समझकर वो ख़्वाब जो ख़ुशबू की तरह हाथ न आए उन ख़्वाबों को आंखो में बसा सोच समझकर कल उम्र का हर लम्हा कही सांप न बन… Continue reading कहता हूँ मुहब्बत है ख़ुदा / हनीफ़ साग़र