दीपक / हरीसिंह पाल

हमारा काम है जलना चाहे यहाँ जलें, या वहाँ जलें झोंपड़ी में, महलों या देवस्थान पर। ये छोटे-मोटे आंधी, तूफान हमें हिला तो सकते हैं मगर बुझा नहीं सकते हम वहीं है, जहाँ पहले कभी थे राह चलते, बाधा और मुश्किलें आयीं तो क्या आयीं? इससे हमारी राहें, क्षणिक ठहरीं जरूर मगर रुकीं नहीं यह… Continue reading दीपक / हरीसिंह पाल

धरती छोटी है / हरीसिंह पाल

न थककर बैठ, यह धरती तुझसे छोटी है। कोई ऐसा नहीं थका दे, तेरे थके बिना सब कुछ है तेरे हाथों में, खोना-पाना और मिट जाना। कुछ भी तुझे अलभ्य नहीं है, यह मंत्र जान ले जो कुछ है तेरे कर में है, किस्मत तुझसे छोटी है न थककर बैठ, यह धरती तुझसे छोटी है।… Continue reading धरती छोटी है / हरीसिंह पाल

अख़बार पढ़ते हुए / हरीशचन्द्र पाण्डे

ट्रक के नीचे आ गया एक आदमी वह अपने बायें चल रहा था एक लटका पाया गया कमरे के पंखे पर होटल में वह कहीं बाहर से आया था एक नहीं रहा बिजली का नंगा तार छू जाने से एक औरत नहीं रही अपने खेत में अपने को बचाते हुए एक नहीं रहा डकैतों से… Continue reading अख़बार पढ़ते हुए / हरीशचन्द्र पाण्डे

एक दिन में / हरीशचन्द्र पाण्डे

दन्त्य ‘स’ को दाँतों का सहारा जितने सघन होते दाँत उतना ही साफ़ उच्चरित होगा ‘स’ दाँत छितरे हो तो सीटी बजाने लगेगा पहले पहल किसी सघन दाँतों वाले मुख से ही फूटा होगा ‘स’ पर ज़रूरी नहीं उसी ने दाख़िला भी दिलवाया हो वर्णमाला में ‘स’ को सबसे अधिक चबाने वाला ज़रूरी नहीं, सबसे… Continue reading एक दिन में / हरीशचन्द्र पाण्डे

समंदर थूं : समदर हूं / हरीश भादानी

थूं………….. मच चढियोड़ौ साव उघाड़ौ नागो दूर दिसावां तांई सूतौ दीसै… नेड़ौ तो आंटीज्यौ आवै पड़ै पछाड़ां खा -खा लूरलै मखमलिया माटी झागूंटा थूक जावै बोला नीं रेवै एक पळ घैंघावतौ रेवै सुणै कुण उछांचळी छोळां-सा थारा बोल थूं………… हँसतौ-हँसतौ जबड़ा पसार गिट जावै जाज जूंण री खातर थारो पताळ छाणती नांवां, मछेरा डकार नीं… Continue reading समंदर थूं : समदर हूं / हरीश भादानी

खाथौ चाल रे / हरीश भादानी

खाथौ चाल रे कमतरिया देखलै सींव पाछौ धिरयौ है रंभावतौ रेवड़ उठतै रेतड़ सूं कंवळाइजै उजास संुवी सिंझ्या सुहाग्ण नीं चढै कुवै भरियाई व्हैला घड़िया टीपाटीप बैठगी व्हैला हांडी कठौती मांड चाल….कमज्या रा धणी चाल खाथौ-खाथौ चाल ऊभगी व्हैला थरकण थांम मघली अंवळाई में दीसै कठैई छिंयां….. तौ हाका पाड़ती भाजै सामै पगां टेरां माथै… Continue reading खाथौ चाल रे / हरीश भादानी

बादल लिखना / हरीश निगम

मेहंदी-सुर्खी काजल लिखना महका-महका आँचल लिखना! धूप-धूप रिश्तों के जंगल ख़त्म नहीं होते हैं मरुथल जलते मन पर बादल लिखना! इंतज़ार के बिखरे काँटे काँटे नहीं कटे सन्नाटे वंशी लिखना मादल लिखना!

दुख नदी भर / हरीश निगम

सुख अंजुरि-भर दुख नदी-भर जी रहे दिन-रात सीकर! ढही भीती उड़ी छानी मेह सूखे आँख पानी फड़फड़ाते मोर-तीतर! हैं हवा के होंठ दरके फटे रिश्ते गाँव-घर के एक मरुथल उगा भीतर! आक हो- आए करौंदे आस के टूटे घरौंदे घेरकर बैठे शनीचर!

पहल / हरीश करमचंदाणी

बच्चों को शोर मचाने से रोको मत बच्चों को सोने को मत कहो बच्चे सो जायेंगे तो जागेगा फिर कौन बच्चे चुप हो जायेंगे तो जगाएगा फिर कौन

पल पल मन / हरीश करमचंदाणी

एक दिन सुख मेरे पास दबे पांव आया उस समय मैं सो रहा था दुखो से घिरा था मैं बड़ी मुश्किल से बहुत देर से आई थी नींद मैं झुंझलाया हुई भारी कोफ्त झिड़क ही दिया उसे और वह भी दुःख हो गया एक दिन दुःख मुझसे बोला जाता हूँ तुम्हे छोड़ कर कहीं और… Continue reading पल पल मन / हरीश करमचंदाणी