इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी / हस्तीमल ‘हस्ती’

इस बार मिले हैं ग़म, कुछ और तरह से भी आँखें है हमारी नम, कुछ और तरह से भी शोला भी नहीं उठता, काजल भी नहीं बनता जलता है किसी का ग़म, कुछ और तरह से भी हर शाख़ सुलगती है, हर फूल दहकता है गिरती है कभी शबनम, कुछ और तरह से भी मंज़िल… Continue reading इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी / हस्तीमल ‘हस्ती’

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए / हसीब सोज़

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए वो अपने आप कल तस्वीर से बाहर निकल आए ये अहल-ए-होश तू घर से कभी बाहर न निकले मगर दीवाने हर जंज़ीर से बाहर निकल आए कोई आवाज़ दे कर देख ले मुड़ कर ने देखेंगे मोहब्बत तेरे इक इक तीर से बाहर निकल आए दर ओ… Continue reading हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए / हसीब सोज़

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दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला / हसीब सोज़

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला आँख का तिनका बहुत आँख मसल कर निकला तेरे मेहमान के स्वागत का कोई फूल थे हम जो भी निकला हमें पैरों से कुचल कर निकला शहर की आँखें बदलना तो मेरे बस में न था ये किया मैं ने कि मैं भेस बदल कर निकला मेरे… Continue reading दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला / हसीब सोज़

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ख़ू समझ में नहीं आती तेरे दीवानों की / हसरत मोहानी

ख़ू[1] समझ में नहीं आती तेरे दीवानों की जिनको दामन की ख़बर है न गिरेबानों की आँख वाले तेरी सूरत पे मिटे जाते हैं शम‍अ़-महफ़िल की तरफ़ भीड़ है परवानों की राज़े-ग़म से हमें आगाह किया ख़ूब किया कुछ निहायत[2] ही नहीं आपके अहसानों की आशिक़ों ही का जिगर है कि हैं ख़ुरसंदे-ज़फ़ा[3] काफ़िरों की… Continue reading ख़ू समझ में नहीं आती तेरे दीवानों की / हसरत मोहानी

वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई / हसरत मोहानी

वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई मैं बे-क़सूर भी कह दूँ कि हाँ ज़रूर हुई नज़र को ताबे-तमाशाए-हुस्ने यार[1] कहाँ ये इस ग़रीब को तम्बीहे-बेक़सूर[2] हुई तुफ़ैले-इश्क[3] है ‘हसरत’ ये सब मेरे नज़दीक तेरे कमाल की शोहरत जो दूर-दूर हुई शब्दार्थ: 1. प्रिय-दर्शन की शक्ति 2. बेक़सूर डाँट 3. प्रेम का… Continue reading वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई / हसरत मोहानी

एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों / हसरत जयपुरी

एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों बनता है मेरा काम तुम्हारे ही काम से होता है मेरा नाम तुम्हारे ही नाम से तुम जैसे मेहरबां का सहारा है दोस्तों ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों जब आ पडा है कोई भी मुश्किल का रास्ता… Continue reading एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों / हसरत जयपुरी

ये कौन आ गई दिलरुबा / हसरत जयपुरी

ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा हथेली पे उसके हिना महकी महकी ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी सवेरे सवेरे मेरे घर पे आई ऐ “हसरत” वो बाद-ए-सबा महकी महकी

आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी

आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर फिर वहीं ले जाए मुझ को बे-क़रारी खींच कर पहुँचा है अब तो निहायत को हमारा हाल-ए-ज़ार ला उसे जिस-तिस तरह तासीर-ए-ज़ारी खींच कर कोह-ए-ग़म रखती है दिल पर इस ख़िराम-ए-नाज़ से ख़ज्लत-ए-रफ़्तार-ए-कबक-ए-कोहसारी खींच कर किस के शोर-ए-इश्‍क़ से यूँ रोता रहता है सदा… Continue reading आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी

आश्‍ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी

आश्‍ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ लब को निस्बत है मिर ज़मज़म-ए-दाद के साथ बस कि है चश्‍म-ए-मुरव्वत से भरा गिर्या-ज़ार पड़ा फिरता है मिरे नाला ओ फ़रियाद के साथ याद उस लुत्फ़-ए-हुज़ूरी का करें क्या हासिल आ पड़ा काम फ़क़त अब तो तिरी याद के साथ ज़ुल्म है हक़ में हमारे… Continue reading आश्‍ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी

हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है / हसन ‘नईम’

हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है इश्‍क़ की ज़िंदा रिवायात से जी डरता है मैं ने माना कि मुझे उन से मोहब्बत न रही हम-नशीं फिर भी मुलाक़ात से जी डरता है सच तो ये कि अभी दिल को सुकूँ है लेकिन अपने आवारा ख़यालात से जी डरता है इतना रोया हूँ… Continue reading हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है / हसन ‘नईम’