वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई
मैं बे-क़सूर भी कह दूँ कि हाँ ज़रूर हुई
नज़र को ताबे-तमाशाए-हुस्ने यार[1] कहाँ
ये इस ग़रीब को तम्बीहे-बेक़सूर[2] हुई
तुफ़ैले-इश्क[3] है ‘हसरत’ ये सब मेरे नज़दीक
तेरे कमाल की शोहरत जो दूर-दूर हुई
शब्दार्थ:
1. प्रिय-दर्शन की शक्ति
2. बेक़सूर डाँट
3. प्रेम का फल