हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए / हसीब सोज़

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए वो अपने आप कल तस्वीर से बाहर निकल आए ये अहल-ए-होश तू घर से कभी बाहर न निकले मगर दीवाने हर जंज़ीर से बाहर निकल आए कोई आवाज़ दे कर देख ले मुड़ कर ने देखेंगे मोहब्बत तेरे इक इक तीर से बाहर निकल आए दर ओ… Continue reading हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए / हसीब सोज़

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दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला / हसीब सोज़

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला आँख का तिनका बहुत आँख मसल कर निकला तेरे मेहमान के स्वागत का कोई फूल थे हम जो भी निकला हमें पैरों से कुचल कर निकला शहर की आँखें बदलना तो मेरे बस में न था ये किया मैं ने कि मैं भेस बदल कर निकला मेरे… Continue reading दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला / हसीब सोज़

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