आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी

आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर फिर वहीं ले जाए मुझ को बे-क़रारी खींच कर पहुँचा है अब तो निहायत को हमारा हाल-ए-ज़ार ला उसे जिस-तिस तरह तासीर-ए-ज़ारी खींच कर कोह-ए-ग़म रखती है दिल पर इस ख़िराम-ए-नाज़ से ख़ज्लत-ए-रफ़्तार-ए-कबक-ए-कोहसारी खींच कर किस के शोर-ए-इश्‍क़ से यूँ रोता रहता है सदा… Continue reading आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी

आश्‍ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी

आश्‍ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ लब को निस्बत है मिर ज़मज़म-ए-दाद के साथ बस कि है चश्‍म-ए-मुरव्वत से भरा गिर्या-ज़ार पड़ा फिरता है मिरे नाला ओ फ़रियाद के साथ याद उस लुत्फ़-ए-हुज़ूरी का करें क्या हासिल आ पड़ा काम फ़क़त अब तो तिरी याद के साथ ज़ुल्म है हक़ में हमारे… Continue reading आश्‍ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ / ‘हसरत’ अज़ीमाबादी