हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ मंज़िल-ए-दोस्त पे दो अश्क बहा लूँ तो चलूँ हर क़दम पर हैं मिरे दिल को हज़ारों उलझाओ दामन-ए-सब्र को काँटों से छुड़ा लूँ तो चलूँ मुझ सा कौन आएगा तजदीद-ए-मकारिम के लिए दश्त-ए-इम्काँ की ज़रा ख़ाक उड़ा लूँ तो चलूँ बस ग़नीमत है ये शीराज़ा-ए-लम्हात-ए-बहार धूम… Continue reading हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ / ‘वासिफ़’ देहलवी
बुझते हुए चराग़ फ़रोजाँ करेंगे हम / ‘वासिफ़’ देहलवी
बुझते हुए चराग़ फ़रोजाँ करेंगे हम तुम आओगे तो जश्न-ए-चराग़ाँ करेंगे हम बाक़ी है ख़ाक-ए-कू-ए-मोहब्बत की तिश्नगी अपने लहू को और भी अर्ज़ां करेंगे हम बे-चारगी के हो गए ये चारागर शिकार अब ख़ुद ही अपने दर्द का दरमाँ करेंगे हम जोश-ए-जुनूँ से जामा-ए-हस्ती है तार-तार क्यूँकर एलाज-ए-तंगी-ए-दामाँ करेंगे हम ऐ चारा-साज़ दिल की लगी… Continue reading बुझते हुए चराग़ फ़रोजाँ करेंगे हम / ‘वासिफ़’ देहलवी
हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस / ‘वामिक़’ जौनपुरी
हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस क्या अभी बाक़ी है कोई और रूसवाई कि बस आश्ना राहें भी होती जा रही हैं अजनबी इस तरह जाती रही आँखों से बीनाई कि बस तो सहर करते रहे हम इंतिज़ार-ए-मेहर-ए-नौ देखते ही देखते ऐसी घटा छाई कि बस ढूँडते ही रह गए हम लाल ओ… Continue reading हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस / ‘वामिक़’ जौनपुरी
अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है / ‘वामिक़’ जौनपुरी
अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है ये कम कि आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार बाक़ी है अभी तो शहर के खण्डरों में झाँकना है मुझे ये देखना भी तो है कोई यार बाक़ी है अभी तो काँटों भरे दश्त की करो बातें अभी तो जैब ओ गिरेबाँ में तार बाक़ी है अभी तो काटना है तिशों से चट्टानों को अभी… Continue reading अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है / ‘वामिक़’ जौनपुरी
पद / वाजिद
कहियो जाय सलाम हमारी राम कूँ। नैण रहे झड लाय तुम्हारे नाम कूँ॥ कमल गया कुमलाय कल्याँ भी जायसी। हरि हाँ, ‘वाजिद’, इस बाडी में बहुरि न भँवरा आयसी॥ चटक चाँदणी रात बिछाया ढोलिया। भर भादव की रैण पपीहा बोलिया॥ कोयल सबद सुणाय रामरस लेत है। हरि हाँ, ‘वाजिद’, दाइये ऊपर लूण पपीहा देत है॥… Continue reading पद / वाजिद
ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम / वाजिद अली शाह
ग़ुँचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम गुलशन-ए-दहर में सबा हो तुम बे-मुरव्वत हो बे-वफ़ा हो तुम अपने मतलब के आश्ना हो तुम कौन हो क्या हो क्या तुम्हें लिक्खें आदमी हो परी हो क्या हो तुम पिस्ता-ए-लब से हम को क़ुव्वत दो दिल-ए-बीमार की दवा हो तुम हम को हासिल किसी की उल्फ़त से मतलब-ए-दिल हो… Continue reading ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम / वाजिद अली शाह
गर्मियाँ शोखियाँ किस शान से हम / वाजिद अली शाह
गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं क्या ही नादानियाँ नादान से हम देखते हैं ग़ैर से बोसा-ज़नी और हमें दुश्नामें मुँह लिए अपना पशेमान से हम देखते हैं फ़स्ल-ए-गुल अब की जुनूँ-ख़ेज़ नहीं सद-अफ़सोस दूर हाथ अपना गिरेबान से हम देखते हैं आज किस शोख़ की गुलशन में हिना-बंदी है सर्व रक़्साँ हैं… Continue reading गर्मियाँ शोखियाँ किस शान से हम / वाजिद अली शाह
आहटें / वाज़दा ख़ान
वे आहटें मुझ तक नहीं आएँगी वे उजाले के दीये मुझ तक नहीं आएँगे आते हैं मुझ तक वे काफ़िले जो रेतीली सरहदों में चला करते हैं अक्सर रूहें पाँवों के निशान छोड़कर क़ाफ़िले में ही आगे बढ़ जाती हैं उन निशानों पर कभी तेज़ हवा ढूहें बनाती है कभी उन्हें अपने संग उड़ाकर ले… Continue reading आहटें / वाज़दा ख़ान
शब्द / वाज़दा ख़ान
शब्द देह में घुलमिल जाते हैं जब ढूँढ़ पाना उन्हें होता है कितना मुश्किल मगर वही शब्द शब्दकोश में कितनी आसानी से मिल जाते हैं ।
जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला / ‘वहीद’ अख़्तर
जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला हाथ आया जो यक़ीं वहम सरासर निकला इक सफ़र दश्त-ए-ख़राबी से सराबों तक है आँख खोली तो जहाँ ख़्वाब का मंज़र निकला कल जहाँ जुल्म ने काटी थीं सरों की फसलें नम हुई है तो उसी ख़ाकसे लश्कर निकला ख़ुश्क आँखों से उठी मौज तो दुनिया… Continue reading जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला / ‘वहीद’ अख़्तर