ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम / वाजिद अली शाह
ग़ुँचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम गुलशन-ए-दहर में सबा हो तुम बे-मुरव्वत हो बे-वफ़ा हो तुम अपने मतलब के आश्ना हो तुम कौन हो क्या हो क्या तुम्हें लिक्खें आदमी हो परी हो क्या हो तुम पिस्ता-ए-लब से हम को क़ुव्वत …