हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस / ‘वामिक़’ जौनपुरी
हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस क्या अभी बाक़ी है कोई और रूसवाई कि बस आश्ना राहें भी होती जा रही हैं अजनबी इस तरह जाती रही आँखों से बीनाई कि बस तो सहर करते रहे हम इंतिज़ार-ए-मेहर-ए-नौ …