कहो इस तरह / चंद्र रेखा ढडवाल

तुम कहो पर इस तरह कि कहा हुआ तुम्हारा उसे कटघरे में खड़ा करे इस तरह नहीं कि उघड़े हुए तुम्हारे अंग-प्रत्यंग वह परोस ले एक बार फिर अपने लिए

सो जा ओ बिटिया रानी / भगवतीप्रसाद द्विवेदी

थपकी देकर सुला रही तेरी नानी, सो जा, सो जा, सो जा ओ बिटिया रानी! तू तो राजकमारी, राजदुलारी है तेरे बिन फीकी हर महल-अटारी है, तेरी नादानी, शैतानी के आगे, सौ-सौ समझदारियां हरदम हारी हैं। तेरी मस्ती से है दुनिया मस्तानी, सो जा, सो जा, सो जा, ओ बिटिया रानी! आएंगे सपने में तारे… Continue reading सो जा ओ बिटिया रानी / भगवतीप्रसाद द्विवेदी

निंदिया आ री / भगवतीप्रसाद द्विवेदी

निंदिया, तू है कितनी प्यारी, बिटिया की अंखियों में आ री! आ जा फुदक-फुदक चिड़िया-सी रुनझुन-गुनगुन गाती, आंगन में उतरी चंदनिया ठुमक-ठुमक लहराती। आ जा सजा सपन फुलवारी, महके मह-मह क्यारी-क्यारी। नींद समंदर में सोए हैं सूरज दादा थककर, चंदा में बैठी बुढ़िया भी लेटी नींद झपककर। नयनों में छा गई खुमारी, सोई तितली प्यारी-प्यारी।… Continue reading निंदिया आ री / भगवतीप्रसाद द्विवेदी

चिड़ियों को पता नहीं / भगवत रावत

चिड़ियों को पता नहीं कि वे कितनी तेज़ी से प्रवेश कर रही हैं कविताओं में। इन अपने दिनों में खासकर उन्हें चहचहाना था उड़ानें भरनी थीं और घंटों गरदन में चोंच डाले गुमसुम बैठकर अपने अंडे सेने थे। मैं देखता हूँ कि वे अक्सर आती हैं बेदर डरी हुईं पंख फड़फड़ाती आहत या अक्सर मरी… Continue reading चिड़ियों को पता नहीं / भगवत रावत

समुद्र के बारे में (कविता) / भगवत रावत

आँख खुली तो ख़ुद को समुद्र के किनारे पाया इसके पहले मैंने उसे पढ़ा था किताबों में आँखों में फैले आसमान की तरह वह फैला था आकर्षक अनंत मैं उसमें कूद पड़ा खूबसूरत चुनौती के उत्तर-सा पर वह जादुई पानी की तरह सिमटने लगा देखते-देखते दिखने लगी तल की मिट्टी दरकते-दरकते वह मुर्दा चेहरों में… Continue reading समुद्र के बारे में (कविता) / भगवत रावत

ऋचाएँ प्रणय-पुराणों की / भगवत दुबे

छूते ही हो गयी देह कंचन, पाषाणों की, हैं कृतज्ञ धड़कनें, हमारे पुलकित प्राणों की! खंजन नयनों के नूपुर जब तुमने खनकाये, तभी मदन के सुप्त पखेरू ने पर फैलाये। कामनाओं में होड़ लगी फिर उच्च उड़ानों की। यौवन की फिर उमड़-घुमड़कर बरसी घनी घटा, संकोचों के सभी आवरण हमने दिये हटा। स्वतः सरकने लगी… Continue reading ऋचाएँ प्रणय-पुराणों की / भगवत दुबे

आप बड़े हैं / भगवत दुबे

आप निगलते सूर्य समूचा अपने मुँह मिट्ठू बनते हैं, हमने माना आप बड़े हैं! पुरखों की उर्वरा भूमि से यश की फसल आपने पायी, अपनी महनत से, बंजर में हमने थोड़ी फसल उगाई। हम ज़मीन पर पाँव रखे हैं, पर, काँधों पर आप चढ़े हैं! किंचित किरणों को हम तरसे आप निगलते सूर्य समूचा, बाँह… Continue reading आप बड़े हैं / भगवत दुबे

अंबर बीच पयोधर देखिकै / भँजन

अंबर बीच पयोधर देखिकै कौन को धीरज सोँ न गयो है । भँजनजू नदिया यह रूप की नाव नहीँ रविहू अथयो है । पँथिक राति बसौ यहि देस भलो तुमको उपदेस दयो है । या मग बीच लगै वह नीच जु पावक मे जरि प्रेत भयो है ।

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उसे यह फ़िक्र है हरदम / भगतसिंह

उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है? हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है? दहर से क्यों खफ़ा रहे, चर्ख का क्यों गिला करें, सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमान हूँ, ए-अहले-महफ़िल, चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली, यह… Continue reading उसे यह फ़िक्र है हरदम / भगतसिंह

मैं एक ठहरे हुए पल में जी रहा हूँ / बसंत त्रिपाठी

मैं एक ठहरे हुए पल में जी रहा हूँ कवि हूँ खादी पहनता हूँ, बहस करता हूँ फ़िल्में देखता हूँ, शराब पीता हूँ बचे समय में अपनी कारगुजारियों को सही साबित करने की कवायद करता हूँ मैं एक ठहरे हुए पल में जी रहा हूँ यद्यपि कुछ भी ठहरा हुआ नहीं तेज़ी से घूम रहे… Continue reading मैं एक ठहरे हुए पल में जी रहा हूँ / बसंत त्रिपाठी