चिड़ियों को पता नहीं / भगवत रावत

चिड़ियों को पता नहीं कि वे कितनी तेज़ी से प्रवेश कर रही हैं कविताओं में। इन अपने दिनों में खासकर उन्हें चहचहाना था उड़ानें भरनी थीं और घंटों गरदन में चोंच डाले गुमसुम बैठकर अपने अंडे सेने थे। मैं देखता हूँ कि वे अक्सर आती हैं बेदर डरी हुईं पंख फड़फड़ाती आहत या अक्सर मरी… Continue reading चिड़ियों को पता नहीं / भगवत रावत

समुद्र के बारे में (कविता) / भगवत रावत

आँख खुली तो ख़ुद को समुद्र के किनारे पाया इसके पहले मैंने उसे पढ़ा था किताबों में आँखों में फैले आसमान की तरह वह फैला था आकर्षक अनंत मैं उसमें कूद पड़ा खूबसूरत चुनौती के उत्तर-सा पर वह जादुई पानी की तरह सिमटने लगा देखते-देखते दिखने लगी तल की मिट्टी दरकते-दरकते वह मुर्दा चेहरों में… Continue reading समुद्र के बारे में (कविता) / भगवत रावत