धुनि पुरि रहै नित काननि में / घनानंद

सवैया धुनि पुरि रहै नित काननि में , अज कों उपराजिबोई सी करै . मन मोहन गोहन जोहन के , अभिलाख समाजिबोई सी करै . ‘घनआनन्द’ तिखिये ताननि सों , सर से सुर साजिबोई सी करै . कित तें यह बैरिन बांसुरिया, बिन बाजेई बाजिबोई सी करे .

जिनको नित नीके निहारत हीं / घनानंद

सवैया जिनको नित नीके निहारत हीं , तिनको अँखियाँ अब रोवति हैं . पल पाँवरे पाइनि चाइनि सों , अंसुवनि की धारनिधोवति हैं . ‘घनआनन्द’ जान सजीवनि कों , सपने बिन पायेइ खोवति हैं . न खुली मूँदी जानि परैं दुख ये , कछु हाइ जगे पर सोवति हैं .

जा हित मात कौं नाम जसोदा / घनानंद

सवैया जा हित मात कौं नाम जसोदा , सुबंस कौ चन्द्रकला -कुलधारी . सोभा-समूहमयी ‘घनआनन्द’ मूरति रंग अनंग जिवारि . जान महा सहजै रिझवार, उदार विलास सु रासबिहारी. मेरो मनोरथ हूँ पुरवौ तुमहीं, मो मनोरथ पूरनकारी .

मोसों होरी खेलन आयो / घनानंद

(राग कान्हरौ ) मोसों होरी खेलन आयौ । लटपटी पाग, अटपटे बैनन, नैनन बीच सुहायौ ॥ डगर-डगर में, बगर-बगर में, सबहिंन के मन भायौ । ’आनँदघन’ प्रभु कर दृग मींड़त, हँसि-हँसि कंठ लगायौ ॥

होरी के मदमाते आए / घनानंद

(राग रामकली) होरी के मदमाते आए, लागै हो मोहन मोहिं सुहाए । चतुर खिलारिन बस करि पाए, खेलि-खेल सब रैन जगाए ॥ दृग अनुराग गुलाल भराए, अंग-अंग बहु रंग रचाए । अबीर-कुमकुमा केसरि लैकै, चोबा की बहु कींच मचाए ॥ जिहिं जाने तिहिं पकरि नँचाए, सरबस फगुवा दै मुकराए । ’आनँदघन’ रस बरसि सिराए, भली… Continue reading होरी के मदमाते आए / घनानंद

दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल / घनानंद

दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल हँसनि लसनि त्यों कपूर सरस्यौ करै । साँसन सुगंध सौंधे कोरिक समोय धरे, अंग-अंग रूप-रंग रस बरस्यौ करै ॥ जान प्यारी तो तन ’अनंदघन’ हित नित, अमित सुहाय आग फाग दरस्यौ करै । इतै पै नवेली लाज अरस्यौ करै, जु प्यारौ – मन फगुवा दै, गारी हू कों… Continue reading दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल / घनानंद

घनआनँद प्यारे कहा जिय जारत / घनानंद

’घनआनँद’ प्यारे कहा जिय जारत, छैल ह्वै फीकिऐ खौरन सों । करि प्रीति पतंग कौ रंग दिना दस, दीसि परै सब ठौरन सों ॥ ये औसर फागु कौ नीकौ फब्यौ, गिरधारीहिं लै कहूँ टौरन सों । मन चाहत है मिलि खेलन कों, तुम खेलत हौ मिलि औरन सों ॥

कहाँ एतौ पानिप बिचारी पिचकारी धरै / घनानंद

कहाँ एतौ पानिप बिचारी पिचकारी धरै, आँसू नदी नैनन उमँगिऐ रहति है । कहाँ ऐसी राँचनि हरद-केसू-केसर में, जैसी पियराई गात पगिए रहति है ॥ चाँचरि-चौपहि हू तौ औसर ही माचति, पै- चिंता की चहल चित्त लगिऐ रहति है । तपनि बुझे बिन ’आनँदघन’ जान बिन, होरी सी हमारे हिए लगिऐ रहति है ॥

पकरि बस कीने री नँदलाल / घनानंद

(राग केदारौ) पकरि बस कीने री नँदलाल । काजर दियौ खिलार राधिका, मुख सों मसलि गुलाल ॥ चपल चलन कों अति ही अरबर, छूटि न सके प्रेम के जाल । सूधे किये बंक ब्रजमोहन, ’आनँदघन’ रस-ख्याल ॥

राधा नवेली सहेली समाज में / घनानंद

राधा नवेली सहेली समाज में, होरी कौ साज सजें अतो सोहै । मोहन छैल खिलार तहाँ रस-प्यास भरी अँखियान सों जोहै ॥ डीठि मिलें, मुरि पीठि दई, हिय-हेत की बात सकै कहि कोहै । सैनन ही बरस्यौ ’घनआनँद’, भीजनि पै रँग-रीझनि मोहै ॥