कहाँ एतौ पानिप बिचारी पिचकारी धरै / घनानंद

कहाँ एतौ पानिप बिचारी पिचकारी धरै,
आँसू नदी नैनन उमँगिऐ रहति है ।
कहाँ ऐसी राँचनि हरद-केसू-केसर में,
जैसी पियराई गात पगिए रहति है ॥
चाँचरि-चौपहि हू तौ औसर ही माचति, पै-
चिंता की चहल चित्त लगिऐ रहति है ।
तपनि बुझे बिन ’आनँदघन’ जान बिन,
होरी सी हमारे हिए लगिऐ रहति है ॥

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *