जिनको नित नीके निहारत हीं / घनानंद

सवैया

जिनको नित नीके निहारत हीं , तिनको अँखियाँ अब रोवति हैं .
पल पाँवरे पाइनि चाइनि सों , अंसुवनि की धारनिधोवति हैं .
‘घनआनन्द’ जान सजीवनि कों , सपने बिन पायेइ खोवति हैं .
न खुली मूँदी जानि परैं दुख ये , कछु हाइ जगे पर सोवति हैं .

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