बला की प्यास भी हद्द-ए-नज़र में पानी था / ख़ालिद कर्रार

बला की प्यास भी हद्द-ए-नज़र में पानी था के आज ख़्वाम में सहरा था घर में पानी था फिर इस बे बाद मेरी रात बे-मिसाल हुई उधर वो शोला-बदन था इधर मैं पानी था न जाने ख़ाक के मिज़गाँ पे आबशर था क्या मेरा कुसूर था मेरे शरर में पानी था तमाम उम्र ये उक़दा… Continue reading बला की प्यास भी हद्द-ए-नज़र में पानी था / ख़ालिद कर्रार

बात ये है के कोई बात पुरानी भी नहीं / ख़ालिद कर्रार

बात ये है के कोई बात पुरानी भी नहीं और इस ख़ाक में अब कोई निशानी भी नहीं ये तो ज़ाहिर में तमव्वुज था बला का लेकिन या बदन मेरा जहाँ कोई रवानी भी नहीं या तो इक मौज-ए-बला-ख़ेज है मेरी ख़ातिर या के मश्कीज़ा-ए-जाँ में कहीं पानी भी नहीं बात ये है के सभी… Continue reading बात ये है के कोई बात पुरानी भी नहीं / ख़ालिद कर्रार

सात परवाने की उल्फ़त सती रोते रोते / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

सात परवाने की उल्फ़त सती रोते रोते शम्अ ने जान दिया सुब्ह के होते होते दाग़ छूटा नहीं ये किस का लहू है क़ातिल हाथ भी दुख गए दामन तिरा धोते धोते किस परी-रू से हुई रात मिरी चश्म दो चार कि मैं दीवाना उठा ख़्वाब से रोते रोते ग़ैर लूटे हैं समन मुफ़्त तिरे… Continue reading सात परवाने की उल्फ़त सती रोते रोते / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

फलक ने रंज तीर आह से मेरे ज़ि-बस खेंचा / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

फलक ने रंज तीर आह से मेरे ज़ि-बस खेंचा लबों तक दिल से शब नाले को मैं ने नीम रस खेंचा मिरे शोख़-ए-ख़राबाती की कैफ़िय्यत न कुछ पूछो बहार-ए-हुस्न को दी आब उस ने जब चरस खेंचा रहा जोश-ए-बहार इस फ़स्लगर यूँही तो बुलबुल ने चमन में दस्त-ए-गुल-चीं से अजब रंग उस बरस खेंचा कहा… Continue reading फलक ने रंज तीर आह से मेरे ज़ि-बस खेंचा / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

आता है सुब्ह उठ कर तेरी बराबरी को / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

आता है सुब्ह उठ कर तेरी बराबरी को क्या दिन लगे हैं देखो ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी को दिल मारने का नुस्ख़ा पहुँचा है आशिक़ों तक क्या कोई जानता है इस कीमिया-गरी को उस तुंद-ख़ू सनम से मिलने लगा हूँ जब से हर कोई जानता है मेरी दिलावरी को अपनी फ़ुसूँ-गरी से अब हम तो हार बैठे बाद-ए-सबा… Continue reading आता है सुब्ह उठ कर तेरी बराबरी को / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

तर्ज़ जीने का सिखाती है मुझे / खलीलुर्रहमान आज़मी

तर्ज़ जीने का सिखाती है मुझे तश्नगी ज़हर पिलाती है मुझे रात भर रहती है किस बात की धुन न जगाती है न सुलाती है मुझे रूठता हूँ जो कभी दुनिया से ज़िन्दगी आके मनाती है मुझे आईना देखूँ तो क्यूँकर देखूँ याद इक शख़्स की आती है मुझे बंद करता हूँ जो आँखें क्या… Continue reading तर्ज़ जीने का सिखाती है मुझे / खलीलुर्रहमान आज़मी

रुख़ में गर्द-ए-मलाल थी क्या थी / खलीलुर्रहमान आज़मी

रुख़ में गर्द-ए-मलाल थी क्या थी हासिल-ए-माह-ओ-साल थी क्या थी एक सूरत सी याद है अब भी आप अपनी मिसाल थी क्या थी मेरे जानिब उठी थी कोई निगाह एक मुबहम सवाल थी क्या थी उस को पाकर भी उस को पा न सका जुस्तजू-ए-जमाल थी क्या थी दिल में थी पर लबों तक आ… Continue reading रुख़ में गर्द-ए-मलाल थी क्या थी / खलीलुर्रहमान आज़मी

जलता नहीं और जल रहा हूँ / खलीलुर्रहमान आज़मी

जलता नहीं और जल रहा हूँ किस आग में मैं पिघल रहा हूँ मफ़लूज हैं हाथ-पाँव मेरे फिर ज़हन में क्यूँ चल रहा हूँ राई का बना के एक पर्वत अब इस पे ख़ुद ही फिसल रहा हूँ किस हाथ से हाथ मैं मिलाऊँ अब अपने ही हाथ मल रहा हूँ क्यों आईना बार बार… Continue reading जलता नहीं और जल रहा हूँ / खलीलुर्रहमान आज़मी

हर-हर साँस नई ख़ुशबू की इक आहट-सी पाता है / खलीलुर्रहमान आज़मी

हर-हर साँस नई ख़ुशबू की इक आहट-सी पाता है इक-इक लम्हा अपने हाथ से जैसे निकला जाता है । दिन ढलने पर नस-नस में जब गर्द-सी जमने लगती है कोई आकर मेरे लहू में फिर मुझको नहलाता है । सारी-सारी रात जले है जो अपनी तन्हाई में उनकी आग में सुब‌ह का सूरज अपना दिया… Continue reading हर-हर साँस नई ख़ुशबू की इक आहट-सी पाता है / खलीलुर्रहमान आज़मी

दिल की रह जाए न दिल में, ये कहानी कह लो / खलीलुर्रहमान आज़मी

दिल की रह जाए न दिल में, ये कहानी कह लो चाहे दो हर्फ़ लिखो, चाहे ज़बानी कह लो । मैंने मरने की दुआ माँगी, वो पूरी न हुई बस, इसी को मेरे मरने की निशानी कह लो । तुमसे कहने की न थी बात मगर कह बैठा बस, इसी को मेरी तबियत की रवानी… Continue reading दिल की रह जाए न दिल में, ये कहानी कह लो / खलीलुर्रहमान आज़मी