ज़वाँ रातों में काला दश्त / ख़ालिद कर्रार

ज़वाँ रातों में काला दश्त क़ालब में उतरता है के मेरे जिस्म ओ जाँ के मर्ग़-ज़ारों की महक हवा के दोश पर रक़्स करती है प्यासी रेत सहराओं की धँसती है रग ओ पय में उधड़ते हैं मसामों से लहू-ज़ारों के चश्मे बर्फ़ कोहसार के सारे परिंदे गीत गाते हैं हुबाब उठता है गहरे नील-गूँ-ज़िंदा… Continue reading ज़वाँ रातों में काला दश्त / ख़ालिद कर्रार

व्यवस्था भी बहुत ज़्यादा नहीं है / ख़ालिद कर्रार

व्यवस्था भी बहुत ज़्यादा नहीं है जतन जोखम बहुत हैं आगे जो जंगल है वो उस से भी ज़्यादा गुंजलक है तपस्या के ठिकाने ज्ञान के मंतर ध्यान की हर एक सीढ़ी पर वही मूरख अजब सा जाल ताने बैठा है युगों से न जाने क्यूँ मेरे रावण से उस को पराजय का ख़तरा है… Continue reading व्यवस्था भी बहुत ज़्यादा नहीं है / ख़ालिद कर्रार

जला रहा हूँ / ख़ालिद कर्रार

जला रहा हूँ कई यूगों से मैं उस को ख़ुद ही जला रहा हूँ जला रहा हूँ कि उसे के जलमे में जीत मेरी है मात उस की जला रहा हूँ बड़े पिण्डाल में सजा कर जला रहा हूँ मिटा रहा हूँ मगर वो मेरी ही मन की अँधेर नगरी में जी रहा हूँ वो… Continue reading जला रहा हूँ / ख़ालिद कर्रार

मुझे बता कर / ख़ालिद कर्रार

मुझे बता कर के मेरी सम्त-ए-सफ़र कहाँ है कई ख़ज़ानों के बे-निशान नक़्शे मुझे थमा कर कहा था उस ने के सातवें दर से और आगे तुम्हारी ख़ातिर मेरा वो बाब-ए-बक़ा खुला है मगर वहाँ पर तमाम दर वा थे मेरी ख़ातिर वो सातवाँ दर खुला नहीं था मगर वहाँ पर कोई भी राज़-ए-बक़ा नहीं… Continue reading मुझे बता कर / ख़ालिद कर्रार

गो हमें मालूम था / ख़ालिद कर्रार

गो हमें मालूम था के अब वो सिलसिला बाक़ी नहीं है गो हमें मालूम था के नूह आने के नहीं अब हाँ मगर जब शहर में पानी दर आया हम ने कफछ मौहूम उम्मीदों को पाला और इक बड़े पिंडाल पे यकजा हुए हम और ब-यक आवाज़ हम ने नूह को फिर से पुकारा गो… Continue reading गो हमें मालूम था / ख़ालिद कर्रार

आँख वा थी / ख़ालिद कर्रार

आँख वा थी होंट चुप थे एक रिदा-ए-यख़ हवा ने ओढ़ ली थी जबीं ख़ामोश सज्दे बे-ज़बाँ थे आगे इक काला समंदर पीछे सुब्ह-ए-आतिशीं थी और जब लम्हें रवाँ थे हम कहाँ थे

इस में ये दश्त था / ख़ालिद कर्रार

इस में ये दश्त था इस दश्त में मख़्लूक कब वारिद हुई ख़ुदा मालूम लेकिन सब बड़े बूढ़े ये कहते हैं उधर एक दश्त था जाने क्यूँ उन को यहाँ लम्बी क़तारों शहर की गुंजान गलियों दफ़्तरों शाह-राहों रास्तों और रेस्तोरानों जलसे जुलूसों रेलियों और ऐवाना हा-ए-बाला-ओ-ज़िरीं में ख़ुश-लिबासी के भरम में नाचती वहशत नज़र… Continue reading इस में ये दश्त था / ख़ालिद कर्रार

वुरूद-ए-जिस्म था जाँ का अज़ाब होने लगा / ख़ालिद कर्रार

वुरूद-ए-जिस्म था जाँ का अज़ाब होने लगा लहू में उतरा मगर ज़हर आब होने लगा कोई तो आए सुनाए नवेद-ए-ताज़ा मुझे उठो के हश्र से पहले हिसाब होने लगा उसे शुबह है झुलस जाएगा वो साथ मेरे मुझे ये ख़ौफ के मैं आफताब होने लगा फिर उस के सामने चुप की कड़ी लबों पे लगी… Continue reading वुरूद-ए-जिस्म था जाँ का अज़ाब होने लगा / ख़ालिद कर्रार

सहरा सागर सब पानी / ख़ालिद कर्रार

सहरा सागर सब पानी सब्ज़ा बंजर सब पानी अव्वल अव्वल पानी था आख़र आख़र सब पानी पानी पानी शहर-पनाह मस्जिद मंदर सब पानी कोई दिन ऐसा होगा सहरा सागर सब पानी मुस्तक़बिल मिट्टी का ढेर माज़ी खंडर सब पानी आग धमाके ख़ून धुआँ नेज़े लश्कर सब पानी सारी दुनिया डाँवा डोल धरती सागर सब पानी… Continue reading सहरा सागर सब पानी / ख़ालिद कर्रार

सफ़र रस्ता सऊबत ख़्वाब सहरा / ख़ालिद कर्रार

सफ़र रस्ता सऊबत ख़्वाब सहरा समंदर वाहिमा ख़ूनाब सहरा सफ़ीने बारिशें तूफ़ान मौसम जज़ीरे कश्तियाँ सैलाब सहरा मुसाफ़िर रेत डंठल प्यास पानी खजूरें बाग़ घर तालाब सहरा कलीसा मौलवी रहिब पुजारी कलस मीनार बुत मेहराब सहरा मशीनें घर धुआँ गंदुम क़तारें मुलाज़िम नींद बच्चे ख़्वाब सहरा ज़मीं पत्थर शजर नहरें किनारे ख़ला नक़्शें हदें गिर्दाब… Continue reading सफ़र रस्ता सऊबत ख़्वाब सहरा / ख़ालिद कर्रार