सात परवाने की उल्फ़त सती रोते रोते / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

सात परवाने की उल्फ़त सती रोते रोते शम्अ ने जान दिया सुब्ह के होते होते दाग़ छूटा नहीं ये किस का लहू है क़ातिल हाथ भी दुख गए दामन तिरा धोते धोते किस परी-रू से हुई रात मिरी चश्म दो चार कि मैं दीवाना उठा ख़्वाब से रोते रोते ग़ैर लूटे हैं समन मुफ़्त तिरे… Continue reading सात परवाने की उल्फ़त सती रोते रोते / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

फलक ने रंज तीर आह से मेरे ज़ि-बस खेंचा / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

फलक ने रंज तीर आह से मेरे ज़ि-बस खेंचा लबों तक दिल से शब नाले को मैं ने नीम रस खेंचा मिरे शोख़-ए-ख़राबाती की कैफ़िय्यत न कुछ पूछो बहार-ए-हुस्न को दी आब उस ने जब चरस खेंचा रहा जोश-ए-बहार इस फ़स्लगर यूँही तो बुलबुल ने चमन में दस्त-ए-गुल-चीं से अजब रंग उस बरस खेंचा कहा… Continue reading फलक ने रंज तीर आह से मेरे ज़ि-बस खेंचा / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

आता है सुब्ह उठ कर तेरी बराबरी को / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली

आता है सुब्ह उठ कर तेरी बराबरी को क्या दिन लगे हैं देखो ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी को दिल मारने का नुस्ख़ा पहुँचा है आशिक़ों तक क्या कोई जानता है इस कीमिया-गरी को उस तुंद-ख़ू सनम से मिलने लगा हूँ जब से हर कोई जानता है मेरी दिलावरी को अपनी फ़ुसूँ-गरी से अब हम तो हार बैठे बाद-ए-सबा… Continue reading आता है सुब्ह उठ कर तेरी बराबरी को / ख़ान-ए-आरज़ू सिराजुद्दीन अली