दिल की रह जाए न दिल में, ये कहानी कह लो / खलीलुर्रहमान आज़मी

दिल की रह जाए न दिल में, ये कहानी कह लो
चाहे दो हर्फ़ लिखो, चाहे ज़बानी कह लो ।

मैंने मरने की दुआ माँगी, वो पूरी न हुई
बस, इसी को मेरे मरने की निशानी कह लो ।

तुमसे कहने की न थी बात मगर कह बैठा
बस, इसी को मेरी तबियत की रवानी कह लो ।

यही इक क़िस्सा ज़माने को मेरा याद आया
वही इक बात जिसे आज पुरानी कह लो ।

हम पे जो गुज़री है, बस, उसको रकम करते हैं
आप बीती कहो या मर्सिया ख़्वानी कह लो ।

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