बला की प्यास भी हद्द-ए-नज़र में पानी था / ख़ालिद कर्रार

बला की प्यास भी हद्द-ए-नज़र में पानी था
के आज ख़्वाम में सहरा था घर में पानी था

फिर इस बे बाद मेरी रात बे-मिसाल हुई
उधर वो शोला-बदन था इधर मैं पानी था

न जाने ख़ाक के मिज़गाँ पे आबशर था क्या
मेरा कुसूर था मेरे शरर में पानी था

तमाम उम्र ये उक़दा न वा हुआ मुझ पर
के हाथ में था या चश्म-ए-ख़िजर में पानी था

अजीब दश्त-ए-तमन्ना से था गुज़र ‘ख़ालिद’
बदन में रेग-ए-रवाँ थी सफर में पानी था

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