अब खोलो स्कूल / ओम धीरज

अब खोलो स्कूल कि, शिक्षा भी तो बिकती है भवन-पार्क ‘गण वेश’ आदि सब सुन्दर भव्य बनाओ, बच्चो में सपने बसते हैं उनको तुरत भुनाओ, वस्तु वही बिकती है जो कि अक्सर दिखती है गुणवत्ता से भले मुरौव्वत नहीं दिखावट से, विज्ञापन की नाव तैरती शब्द सजावट से, गीली लकड़ी गर्म आँच में भी तो… Continue reading अब खोलो स्कूल / ओम धीरज

आइए शुरू करें / ओम धीरज

हर तरफ़ पसरा अँधेरा कब तलक़ ढोते रहेंगे भूल कर अपना सवेरा कब तलक़ सोते रहेंगे आइए एक दीप से एक दीप को ज्योतित करें हर समय सूरज का रोना कब तलक रोते रहेंगे

नेता और अफसर / ओम धीरज

नेता डरा दिखे अफसर से, अफसर नेता से दोनों अपने फन में माहिर, हैं अभिनेता से। सच में डर है नहीं किसी को, दुनिया को भरमाएँ, सांठ-गांठ कर ‘माल-मलाई’, चुपके-चुपके खाएँ, जिद्दी साँड़ भगाते दिक्खे, सड़े रहेठा से। अनफिट हुआ नया कपड़ा तो, गन्दा उसे बताएँ, उसी एक से साफ-सफाई, का मतलब समझाएँ, पीटे कसकर… Continue reading नेता और अफसर / ओम धीरज

बातों की रातें / ओंकारेश्वर दयाल ‘नीरद’

आँगन में बैठी दो चिड़ियाँ करती थीं आपस में बातें, आओ हिल-मिलकर हम दोनों आज काट दें काली रातें। तभी अचानक नील गगन में कहीं दूर से चंदा बोला, चमक रहा था, झलक रहा था जैसे हो चाँदी का गोला। मेरा भी मन साथ तुम्हारे बातें करने को है करता, पर नीचे मैं कैसे जाऊँ… Continue reading बातों की रातें / ओंकारेश्वर दयाल ‘नीरद’

मैं बुरा ही सही भला न सही / ‘ऐश’ देलहवी

मैं बुरा ही सही भला न सही पर तेरी कौन सी जफ़ा न सही दर्द-ए-दिल हम तो उन से कह गुज़रे गर उन्हों ने नहीं सुना न सही शब-ए-ग़म में बला से शुग़ल तो है नाला-ए-दिल मेरा रसा न सही दिल भी अपना नहीं रहा न रहे ये भी ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-ज़ा न सही देख तो… Continue reading मैं बुरा ही सही भला न सही / ‘ऐश’ देलहवी

क्या हुए आशिक़ उस शकर-लब के / ‘ऐश’ देलहवी

क्या हुए आशिक़ उस शकर-लब के ताने सहने पड़े हमें सब के भूलना मत बुतों की यारी पर हैं ये बद-केश अपने मतलब के क़ैस ओ फ़रहाद चल बसे अफ़सोस थे वो कम-बख़्त अपने मशरब के शैख़ियाँ शैख़ जी की देंगे दिखा मिल गए वो अगर कहीं अब के याद रखना कभी न बचिएगा मिल… Continue reading क्या हुए आशिक़ उस शकर-लब के / ‘ऐश’ देलहवी

कुछ कम नहीं है शम्मा से दिल की / ‘ऐश’ देलहवी

कुछ कम नहीं है शम्मा से दिल की लगन में हम फ़ानूस में वो जलती है याँ पैरहन में हम हैं तुफ़्ता-जाँ मुफ़ारक़त-ए-गुल-बदन में हम ऐसा न हो के आग लगा दें चमन में हम गुम होंगे बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन में हम क़ब्ज़ा करेंगे चीन को ले कर ख़तन में हम गर ये ही छेड़ दस्त-ए-जुनूँ की… Continue reading कुछ कम नहीं है शम्मा से दिल की / ‘ऐश’ देलहवी

जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है / ‘ऐश’ देलहवी

जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है वो ख़ुद काम भी है बज़्म अग़्यार से ख़ाली भी है और शाम भी है ज़ुल्फ़ के नीचे ख़त-ए-सब्ज़ तो देखा ही न था ऐ लो एक और नया दाम तह-ए-दाम भी है चारा-गर जाने दे तकलीफ़-ए-मदवा है अबस मर्ज़-ए-इश्क़ से होता कहीं आराम भी है हो गया… Continue reading जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है / ‘ऐश’ देलहवी

आशिक़ों को ऐ फ़लक देवेगा तू / ‘ऐश’ देलहवी

आशिक़ों को ऐ फ़लक देवेगा तू आज़ार क्या दुश्मन-ए-जाँ उन का थोड़ा है दिल-ए-बीमार क्या रश्क आवे क्यूँ न मुझ को देखना उस की तरफ़ टकटकी बाँधे हुए है रोज़न-ए-दीवार क्या आह ने तो ख़ीमा-ए-गर्दूं को फूँका देखें अब रंग लाते हैं हमारे दीदा-ए-ख़ूँ-बार क्या मुर्ग़-ए-दिल के वास्ते ऐ हम-सफ़ीरो कम है क्यूँ कुछ क़ज़ा… Continue reading आशिक़ों को ऐ फ़लक देवेगा तू / ‘ऐश’ देलहवी

तक्मील / एजाज़ फारूक़ी

वो तीरगी भी अजीब थी चाँदनी की ठंडक गुदाज़ चादर से सारा जंगल लिपट रहा था गुलों के सद-रंग धुँदले धुँदले से जैसे इक सीम-तन के चेहरे के शोख गाजे पे आँसुओं का गुबार हो पेड़, मुंतजिर अपनी नर्म शाखों के हाथ फैलाए और कभी शाख चटकी तो साए निकले मुलूक फूलों को चूम कर… Continue reading तक्मील / एजाज़ फारूक़ी