हम कदम ढूँढे कहीं / ओम धीरज

उम्र अब अपना असर करने लगी, अब चलो, कुछ हम कदम ढूढ़ें कहीं साथ दे जो लड़खड़ाते पाँव को, अर्थ दे जो डगमगाते भाव को, हैं कहाँ ऊँचा कहाँ नीचा यहाँ, जो ठिठक कर पढ़ सके हर ठाँव को, जब थकें तो साथ दे कुछ बैठकर, अब चलो, यूं हम सफर ढूढ़ें कहीं जब कभी… Continue reading हम कदम ढूँढे कहीं / ओम धीरज

मैं समय का गीत / ओम धीरज

मै समय का गीत लिखना चाहता, चाहता मैं गीत लिखना आज भी जब समय संवाद से है बच रहा हादसा हर वक्त कोई रच रहा साथ अपनी छोड़ती परछाईयाँ झूठ से भी झूठ कहता सच रहा शत्रु होते इस समय के पृष्ठ पर ’दूध-जल’-सा मीत लिखना चाहता जाल का संजाल बुनती उलझनें, नीड़ सपनों के… Continue reading मैं समय का गीत / ओम धीरज

महिला ऐसे चलती / ओम धीरज

आठ साल के बच्चे के संग महिला ऐसे चलती, जैसे साथ सुरक्षा गाड़ी लप-लप बत्ती जलती बचपन से ही देख रही वह यह विचित्र परिपाटी, पुरूष पूत है लोहा पक्का वह कुम्हार की माटी, ‘बूँद पड़े पर गल जायेगी’ यही सोचकर बढ़ती, इसीलिए वह सदा साथ में छाता कोई रखती बाबुल के आँगन में भी… Continue reading महिला ऐसे चलती / ओम धीरज

तन्त्र की जन्म कुण्डली लिखते / ओम धीरज

थोड़े बहुत बूथ पर लेकिन नहीं सड़क पर दिखते, सन्नाटों के बीच ’तन्त्र’ की जन्म कुण्डली लिखते कलम कहीं पर रूक-रूक जाती मनचाहा जब दीखे, तारकोल से लिपे चेहरे देख ईंकं भी चीखे, सूर्य चन्द्र-से ग्रह गायब है, राहु केतु ही मिलते कथनी-करनी बीच खुदी है कितनी गहरी खाई, जिसे लाँघते काँप रही है अपनी… Continue reading तन्त्र की जन्म कुण्डली लिखते / ओम धीरज

अब खोलो स्कूल / ओम धीरज

अब खोलो स्कूल कि, शिक्षा भी तो बिकती है भवन-पार्क ‘गण वेश’ आदि सब सुन्दर भव्य बनाओ, बच्चो में सपने बसते हैं उनको तुरत भुनाओ, वस्तु वही बिकती है जो कि अक्सर दिखती है गुणवत्ता से भले मुरौव्वत नहीं दिखावट से, विज्ञापन की नाव तैरती शब्द सजावट से, गीली लकड़ी गर्म आँच में भी तो… Continue reading अब खोलो स्कूल / ओम धीरज

आइए शुरू करें / ओम धीरज

हर तरफ़ पसरा अँधेरा कब तलक़ ढोते रहेंगे भूल कर अपना सवेरा कब तलक़ सोते रहेंगे आइए एक दीप से एक दीप को ज्योतित करें हर समय सूरज का रोना कब तलक रोते रहेंगे

नेता और अफसर / ओम धीरज

नेता डरा दिखे अफसर से, अफसर नेता से दोनों अपने फन में माहिर, हैं अभिनेता से। सच में डर है नहीं किसी को, दुनिया को भरमाएँ, सांठ-गांठ कर ‘माल-मलाई’, चुपके-चुपके खाएँ, जिद्दी साँड़ भगाते दिक्खे, सड़े रहेठा से। अनफिट हुआ नया कपड़ा तो, गन्दा उसे बताएँ, उसी एक से साफ-सफाई, का मतलब समझाएँ, पीटे कसकर… Continue reading नेता और अफसर / ओम धीरज