तक्मील / एजाज़ फारूक़ी

वो तीरगी भी अजीब थी चाँदनी की ठंडक गुदाज़ चादर से सारा जंगल लिपट रहा था गुलों के सद-रंग धुँदले धुँदले से जैसे इक सीम-तन के चेहरे के शोख गाजे पे आँसुओं का गुबार हो पेड़, मुंतजिर अपनी नर्म शाखों के हाथ फैलाए और कभी शाख चटकी तो साए निकले मुलूक फूलों को चूम कर… Continue reading तक्मील / एजाज़ फारूक़ी

कतबा / एजाज़ फारूक़ी

ये कतबा फ़लाँ सन का है ये सन इस लिए इस पर कुंदा किया कि सब वारियों पर ये वाज़ेह रहे कि इस रोज़ बरसी है मरहूम की अज़ीज़ ओ अक़ारिब यतामा मसाकीन को ज़ियाफ़त से अपनी नवाज़ें सभी को बुलाएँ कि सब मिल के मरहूम के हक़ में दस्त-ए-दुआ का उठाएँ ज़बाँ से कहीं… Continue reading कतबा / एजाज़ फारूक़ी

हर्फ़ / एजाज़ फारूक़ी

वादी वादी सहरा सहरा फिरता रहा मैं दीवाना कोह मिला तो दरिया बन कर उस का सीना चीर के गुज़रा सहराओं की तुंद-हवाओं में लाल बन कर जलता रहा धरती की आग़ोश मिली तो पौदा बन कर फूटा जब आकाश से नज़रें मिलीं तो ताएर बन के उड़ा गारों के अँधियारों में मैं चाँद बना… Continue reading हर्फ़ / एजाज़ फारूक़ी

चुप / एजाज़ फारूक़ी

तू ने सर्द हवाओं की ज़ुबाँ सीखी है तेरे ठंडे लम्स से धड़कनें यख़-बस्ता हुईं और मैं चुप हूँ मैं ने वक़्त-ए-सुब्ह चिड़ियों की सुरीली चहचहाहट को सुना और मेरे ज़ेहन के सागर में नग़मे बुलबुले बन कर उठे हैं तेरे कड़वे बोल से हर-सू हैं आवाज़ों के लाशें और मैॅं चुप हूँ मैं ने… Continue reading चुप / एजाज़ फारूक़ी

अपना अपना रंग / एजाज़ फारूक़ी

तू है इक ताँबे का थाल जो सूरज की गर्मी में सारा साल तपे कोई हल्का नीला बादल जब उस पर बूँदें बरसाए एक छनाका हो और बूँदें बादल को उड़ जाएँ ताँबा जलता रहे वो है इक बिजली का तार जिस के अंदर तेज़ और आतिश-नाक इक बर्क़ी-रौ दौड़े जो भीउस के पास से… Continue reading अपना अपना रंग / एजाज़ फारूक़ी

आहया / एजाज़ फारूक़ी

असा-ए-मूसा अँधेरी रातों की एक तज्सीम मुंजमिद जिस में हाल इक नुक़्ता-ए-सुकूनी न कोई हरकत न कोई रफ़्तार जब आसमानों से आग बरसी तो बर्फ़ पिघली धुआँ सा निकला असा में हरकत हुई तो महबूस नाग निकला वो एक सय्याल लम्हा जो मुंजमिद पड़ा था बढ़ा झपट कर ख़िज़ाँ-रसीदा शजर की सब ख़ुश्क टहनियों को… Continue reading आहया / एजाज़ फारूक़ी