Ajaz Farooqi Archive
वो तीरगी भी अजीब थी चाँदनी की ठंडक गुदाज़ चादर से सारा जंगल लिपट रहा था गुलों के सद-रंग धुँदले धुँदले से जैसे इक सीम-तन के चेहरे के शोख गाजे पे आँसुओं का गुबार हो पेड़, मुंतजिर अपनी नर्म शाखों …
ये कतबा फ़लाँ सन का है ये सन इस लिए इस पर कुंदा किया कि सब वारियों पर ये वाज़ेह रहे कि इस रोज़ बरसी है मरहूम की अज़ीज़ ओ अक़ारिब यतामा मसाकीन को ज़ियाफ़त से अपनी नवाज़ें सभी को …
वादी वादी सहरा सहरा फिरता रहा मैं दीवाना कोह मिला तो दरिया बन कर उस का सीना चीर के गुज़रा सहराओं की तुंद-हवाओं में लाल बन कर जलता रहा धरती की आग़ोश मिली तो पौदा बन कर फूटा जब आकाश …
तू ने सर्द हवाओं की ज़ुबाँ सीखी है तेरे ठंडे लम्स से धड़कनें यख़-बस्ता हुईं और मैं चुप हूँ मैं ने वक़्त-ए-सुब्ह चिड़ियों की सुरीली चहचहाहट को सुना और मेरे ज़ेहन के सागर में नग़मे बुलबुले बन कर उठे हैं …
तू है इक ताँबे का थाल जो सूरज की गर्मी में सारा साल तपे कोई हल्का नीला बादल जब उस पर बूँदें बरसाए एक छनाका हो और बूँदें बादल को उड़ जाएँ ताँबा जलता रहे वो है इक बिजली का …
असा-ए-मूसा अँधेरी रातों की एक तज्सीम मुंजमिद जिस में हाल इक नुक़्ता-ए-सुकूनी न कोई हरकत न कोई रफ़्तार जब आसमानों से आग बरसी तो बर्फ़ पिघली धुआँ सा निकला असा में हरकत हुई तो महबूस नाग निकला वो एक सय्याल …