डस्ट-बिन / हरजेन्द्र चौधरी

फिर से होगी उल्टी अभी कसर है -ऐसा लगता है कभी-कभी एक कविता लिखने के बाद एक कविता और दूसरी कविता लिखने के बीच बड़ी उबकाऊ उपमाएँ बड़े नीच बिम्ब बड़े जुगुप्सक पद-अर्थ पेट की मरोड़ या बलग़म के चक्रवात की तरह उठते हैं कहीं बहुत भीतर से कविताओं का यह पुलिन्दा सड़ांधता हुआ ‘डस्ट-बिन’… Continue reading डस्ट-बिन / हरजेन्द्र चौधरी

रक्त झर-झर… / हरजेन्द्र चौधरी

बन्द होगा बन्द होगा अभी बन्द होगा रक्त रिसना बन्द होगा बन्द होगा अभी बन्द होगा क़लम घिसना …इस उम्मीद में अभी तो टपक ही रहे हैं टपकते ही जा रहे हैं आत्मा के प्राचीन घाव जो मुझे याद नहीं समय की फ़र्राटेदार सड़क पर किस दुर्घटना से मिले थे टीस नहीं रहे इस क्षण… Continue reading रक्त झर-झर… / हरजेन्द्र चौधरी

द्रोणाचार्य / हरकिशन सन्तोषी

द्रोणाचार्य क्या तुम इस देश के मनु को जानते हो? द्रोणाचार्य क्या तुम ‘तथाकथित वीर अर्जुन’ को जानते हो? द्रोणाचार्य क्या तुम ‘परमवीर एकलव्य’ को जानते हो? यदि नहीं तो आओ मैं तुम्हें इनका परिचय कराऊँ! तुम्हारे अन्तर्मन की व्यथा का नाम— है मनु तुम्हारे अन्दर के छल-कपट की शिक्षा का नाम— है अर्जुन तुम्हारे… Continue reading द्रोणाचार्य / हरकिशन सन्तोषी

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए / हम्माद नियाज़ी

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए मुतालया मिरी वहशत का लाज़मी किया जाए हम ऐसे लोग जो आइंदा ओ गुज़िश्ता हैं हमारे अदह को मौजूद से तही किया जाए ख़बर मिली है उस ख़ुश-ख़बर की आमद है सो एहतिमाम-ए-सुख़न आज मुल्तवी किया जाए हमें अब अपने नए रास्ते बनाने हैं जो काम कल… Continue reading भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए / हम्माद नियाज़ी

बे-सबब हो के बे-क़रार आया / हम्माद नियाज़ी

बे-सबब हो के बे-क़रार आया मेरे पीछे मिरा ग़ुबार आया चंद यादों का शोर था मुझ में मैं उसे क़ब्र में उतार आया उस को देखा और उस के बाद मुझे अपनी हैरत पे ए‘तिबार आया भूल बैठा है रंग-ए-गुल मिरा दिल परतव-ए-गुल पे इतना प्यार आया एक दुनिया को चाहता था वो एक दुनिया… Continue reading बे-सबब हो के बे-क़रार आया / हम्माद नियाज़ी

ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम / हबीब जालिब

ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम. लेकिन ये क्या कि शहर तेरा छोड़ जाएँ हम. मुद्दत हुई है कूए बुताँ की तरफ़ गए, आवारगी से दिल को कहाँ तक बचाएँ हम. शायद बकैदे-जीस्त ये साअत न आ सके तुम दास्ताने-शौक़ सुनो और सुनाएँ हम. उसके बगैर आज बहोत जी उदास है,… Continue reading ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम / हबीब जालिब

और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना / हबीब जालिब

और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना रह गया काम हमारा ही बगावत लिखना न सिले की न सताइश की तमन्ना हमको हक में लोगों के हमारी तो है आदत लिखना. हम ने तो भूलके भी शह का कसीदा न लिखा शायद आया इसी खूबी की बदौलत लिखना. दह्र के ग़म से हुआ रब्त तो हम… Continue reading और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना / हबीब जालिब

ये कैसी हवा-ए-ग़म-ओ-आज़ार चली है / ‘हफ़ीज़’ बनारसी

ये कैसी हवा-ए-ग़म-ओ-आज़ार चली है ख़ुद बाद-ए-बहारी भी शरर-बार चली है देखी ही न थी जिस ने शिकस्त आज तक अपनी वो चश्‍म-ए-फसूँ-खेज़ भी दिल हार चली है अब कोई हदीस-ए-क़द-ओ-गेसू नहीं सुनता दुनिया में वो रस्म-ए-रसन-ओ-दार चली है तकता ही नहीं कोई मय ओ जाम की जानिब क्या चाल ये तू ने निगह-ए-यार चली… Continue reading ये कैसी हवा-ए-ग़म-ओ-आज़ार चली है / ‘हफ़ीज़’ बनारसी

ये हादसा भी षहर-ए-निगाराँ में हो गया / ‘हफ़ीज़’ बनारसी

ये हादसा भी शहर-ए-निगाराँ में हो गया बे-चेहरगी की भीड़ में हर चेहरा खो गया जिस को सज़ा मिली थी कि जागे तमात उम्र सुनता हूँ आज मौत की बाँहों में सो गया हरकत किसी में है न हरारत किसी में है क्या शहर था जो बर्फ़ की चट्टान हो गया मैं उस को नफरतों… Continue reading ये हादसा भी षहर-ए-निगाराँ में हो गया / ‘हफ़ीज़’ बनारसी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्‍नगी का मंज़र है / ‘हफ़ीज़’ बनारसी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्‍नगी का मंज़र है वही हुसैन वही क़ातिलों का लश्‍कर है ये किस मक़ाम पे लाई है ज़िंदगी हम को हँसी लबों पे है सीने में ग़म का दफ्तर है यक़ीन किस पे करें किस को दोस्त ठहराएँ हर आस्तीन में पोशीदा कोई ख़ंजर है गिला नहीं मिरे होंटों पे तंग-दस्ती का ख़ुदा… Continue reading लब-ए-फ़ुरात वही तिश्‍नगी का मंज़र है / ‘हफ़ीज़’ बनारसी