फिर से होगी उल्टी अभी कसर है -ऐसा लगता है कभी-कभी एक कविता लिखने के बाद एक कविता और दूसरी कविता लिखने के बीच बड़ी उबकाऊ उपमाएँ बड़े नीच बिम्ब बड़े जुगुप्सक पद-अर्थ पेट की मरोड़ या बलग़म के चक्रवात की तरह उठते हैं कहीं बहुत भीतर से कविताओं का यह पुलिन्दा सड़ांधता हुआ ‘डस्ट-बिन’… Continue reading डस्ट-बिन / हरजेन्द्र चौधरी
Category: Harjendra Chaudhary
रक्त झर-झर… / हरजेन्द्र चौधरी
बन्द होगा बन्द होगा अभी बन्द होगा रक्त रिसना बन्द होगा बन्द होगा अभी बन्द होगा क़लम घिसना …इस उम्मीद में अभी तो टपक ही रहे हैं टपकते ही जा रहे हैं आत्मा के प्राचीन घाव जो मुझे याद नहीं समय की फ़र्राटेदार सड़क पर किस दुर्घटना से मिले थे टीस नहीं रहे इस क्षण… Continue reading रक्त झर-झर… / हरजेन्द्र चौधरी