खेल-सियासत / हृदयेश

यह कैसी शतरंज बिछी है, जिसपर खड़े पियादे-से हम खेल-खेल में पिट जाते हैं, कितने सीधे-सादे-से हम । बिना मोल मोहरे बनें हम खड़े हुए हैं यहाँ भीड़ में ऐसी क्या है मज़बूरी जो बँधे प्राण राजा-वजीर में फलक-विहीन किसी तुक्के-सा चलते हैं, जिस-तिस के हाथों राजा के हाथी-घोड़ों से कुछ थोड़े, कुछ ज़्यादे-से हम… Continue reading खेल-सियासत / हृदयेश

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मन बहुत है / हृदयेश

आज तपती रेत पर कुछ छंद लहरों के लिखें हम समय के अतिरेक को हम साथ ले अपने स्वरों में मन बहुत है ! कस रहे गुंजलक से ये सुबह के पल बहुत भारी अनय को देता समर्थन दिवस यह गेरुआधारी चिमनियों से निकल सोनल धूप उतरी प्यालियों में ज़िंदगी की खोज होने है लगी… Continue reading मन बहुत है / हृदयेश

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लोगो ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए / हुसैन माजिद

लोगो ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए हम ने अपना अंतर खोजा दीवाने कहलाए कैसे सपने किस की आशा कब से हैं मेहमान बने तन्हाई के सून आँगन में यादों के साए आँखों में जो आज किसी के बदली बन के झूम उठी है क्या अच्छा हो ऐसी बरसे सब जल-थल हो जाए… Continue reading लोगो ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए / हुसैन माजिद

धूल भरी आँधी में सब का चेहरा रौशन रखना है / हुसैन माजिद

धूल भरी आँधी में सब का चेहरा रौशन रखना है बस्ती पीछे रह जाएगी आगे आगे सहरा है एक ज़रा सी बात पे उस ने दिल का रिश्ता तोड़ दिया हम ने जिस का तन्हाई में बरसों रस्ता देखा है प्यार मोहब्बत आह ओ ज़ारी लफ़्ज़ों की तस्वीरें हैं किस के पीछे भाग रहे हो… Continue reading धूल भरी आँधी में सब का चेहरा रौशन रखना है / हुसैन माजिद

दोहे / हुल्लड़ मुरादाबादी

कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए, महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए। बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय, पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय। गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय। पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद, मंत्री की चमचागिरी,… Continue reading दोहे / हुल्लड़ मुरादाबादी

क्या करेगी चांदनी / हुल्लड़ मुरादाबादी

चांद औरों पर मरेगा क्या करेगी चांदनी प्यार में पंगा करेगा क्या करेगी चांदनी चांद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियाँ कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चांदनी डिग्रियाँ हैं बैग में पर जेब में पैसे नहीं नौजवाँ फ़ाँके करेगा क्या करेगी चांदनी जो बचा था खून वो तो सब सियासत पी गई खुदकुशी… Continue reading क्या करेगी चांदनी / हुल्लड़ मुरादाबादी

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है / हुमेरा ‘राहत’

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है तअल्लुक़ टूटने को इक बहाना चाहता है जहाँ इक शख़्स भी मिलता नहीं है चाहने से वहाँ ये दिल हथेली पर ज़माना चाहता है मुझे समझा रही है आँख की तहरीर उस की वो आधे रास्ते से लौट जाना चाहता है ये लाज़िम है कि आँखें दान कर… Continue reading फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है / हुमेरा ‘राहत’

आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा / हुमेरा ‘राहत’

आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा फिर इश्क़ ने ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा ये शहर-ए-सदाक़त है क़दम सोच के रखना शाने पे किसी के भी यहाँ सर नहीं देखा हम उम्र बसर करते रहे ‘मीर’ की मानिंद खिड़की को कभी खोल के बाहर नहीं देखा वो इश्क़ को किस तरह समझ पाएगा… Continue reading आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा / हुमेरा ‘राहत’

परतों का अन्तर्विरोध / हीरालाल

नदी जो ऊपर से एक दिखती है, कई परतों से बनी है। नदी, जो ऊपर-ऊपर जोरों से बहती है नीचे जाकर हो गई है शान्त। चट कर गए हैं उसकी ऊर्जा को उसकी अपनी ही परतों के अन्तर्विरोध। ऊपर से जवान दीखने वाली यह पहाड़ की लड़की अन्दर से बूढ़ी हो रही है।

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आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं / हिलाल फ़रीद

आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं जैसा मगर लगा तुम्हें वैसा नहीं हूँ मैं अब मुब्तला-ए-इश्क़ ज़्यादा नहीं हूँ मैं कहते हो तुम यही तो फिर अच्छा नहीं हूँ मैं ख़ूबी न हो कोई मगर इतना तो है ज़रूर झूठी लगे जो बात वो कहता नहीं हूँ मैं पानी पे बनते अक्स… Continue reading आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं / हिलाल फ़रीद