फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है तअल्लुक़ टूटने को इक बहाना चाहता है जहाँ इक शख़्स भी मिलता नहीं है चाहने से वहाँ ये दिल हथेली पर ज़माना चाहता है मुझे समझा रही है आँख की तहरीर उस की वो आधे रास्ते से लौट जाना चाहता है ये लाज़िम है कि आँखें दान कर… Continue reading फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है / हुमेरा ‘राहत’
Category: Humaira Rahat
आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा / हुमेरा ‘राहत’
आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा फिर इश्क़ ने ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा ये शहर-ए-सदाक़त है क़दम सोच के रखना शाने पे किसी के भी यहाँ सर नहीं देखा हम उम्र बसर करते रहे ‘मीर’ की मानिंद खिड़की को कभी खोल के बाहर नहीं देखा वो इश्क़ को किस तरह समझ पाएगा… Continue reading आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा / हुमेरा ‘राहत’