आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं / हिलाल फ़रीद

आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं
जैसा मगर लगा तुम्हें वैसा नहीं हूँ मैं

अब मुब्तला-ए-इश्क़ ज़्यादा नहीं हूँ मैं
कहते हो तुम यही तो फिर अच्छा नहीं हूँ मैं

ख़ूबी न हो कोई मगर इतना तो है ज़रूर
झूठी लगे जो बात वो कहता नहीं हूँ मैं

पानी पे बनते अक्स की मानिंद हूँ मगर
आँखों में कोई भर ले तो मिटता नहीं हूँ मैं

इस तरह ख़ुद को मुझ पे नुमायाँ न कीजिए
इंसान हूँ हुज़ूर फ़रिश्ता नहीं हूँ मैं

रस्तों के ख़म व पेच में ऐसा रहूँ हूँ ग़र्क़
अब तक किसी मक़ाम पे ठहरा नहीं हूँ मैं

सौदा है मेरे सर में तो पैरों मंे भी है दम
चलता हूँ एक बार तो रूकता नहीं हूँ मैं

मानो मेरी भी बात के सब कुछ लुटा के भी
जीता हूँ उस के इश्क़ में हारा नहीं हूँ मैं

सुन ले ‘हिलाल’ आज ही सुनना है जो ग़ज़ल
फिर मुझ से मत ये कहना सुनाता नहीं हूँ मैं

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