अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था / शकील जमाली

अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था चलो हमी सही सारी बुराईयों का सबब मगर तुझे भी ज़रा सा निभाना चाहिए था अगर नसीब में तारीकियाँ ही लिक्खीं थीं तो फिर चराग़ हवा में जलाना चाहिए था मोहब्बतों को छुपाते हो बुज़दिलों की तरह ये इश्तिहार… Continue reading अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था / शकील जमाली

चाक कर कर के गिरेबाँ रोज़ सीना चाहिए / ‘शकील’ ग्वालिअरी

चाक कर कर के गिरेबाँ रोज़ सीना चाहिए ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जीना चाहिए ख़ुद-कुशी के टल गए लम्हे तो सोचा मुद्दतों ये ख़याल आया ही क्यूँ था ज़हर पीना चाहिए मशवरा मौजों से लूँ उस पार जाना है मुझे ना-ख़ुदाओं का तो कहना है सफ़ीना चाहिए बा-सलीका लोग भी हैं बे-सलीका लोग भी… Continue reading चाक कर कर के गिरेबाँ रोज़ सीना चाहिए / ‘शकील’ ग्वालिअरी

आज उस बज़्म में यूँ दाद-ए-वफ़ा दी जाए / ‘शकील’ ग्वालिअरी

आज उस बज़्म में यूँ दाद-ए-वफ़ा दी जाए ऐ ग़म-ए-इश्‍क तिरी उम्र बढ़ा दी जाए मौसम-ए-ख़ंदा-ए-गुल है तो ज़बाँ बंद रक्खें बात अपनी भी हँसी में न उड़ा दी जाए इश्‍वा-ए-नाज़-ओ-अदा जौर ओ जफ़ा मक़ ओ दग़ा कैसे जी लें जो रह इक बात भुला दी जाए उस के ग़म ही से है हर दर्द… Continue reading आज उस बज़्म में यूँ दाद-ए-वफ़ा दी जाए / ‘शकील’ ग्वालिअरी

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए / शकील आज़मी

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए मैं तो सूरज हूँ बुझूँगा भी तो जलने के लिए मंज़िलों तुम ही कुछ आगे की तरफ़ बढ़ जाओ रास्ता कम है मिरे पाँव को चलने के लिए ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है एक मौक़ा भी नहीं देती सँभलने के लिए मैं वो मौसम जो… Continue reading चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए / शकील आज़मी

बात से बात की गहराई चली जाती है / शकील आज़मी

बात से बात की गहराई चली जाती है झूठ आ जाए तो सच्चाई चली जाती है रात भर जागते रहने का अमल ठीक नहीं चाँद के इश्क़ में बीनाई चली जाती है मैं ने इस शहर को देखा भी नहीं जी भर के और तबीअत है कि घबराई चली जाती है कुछ दिनों के लिए… Continue reading बात से बात की गहराई चली जाती है / शकील आज़मी

मैना की शादी / शंभूलाल शर्मा ‘बसंत’

अमराई तो खूब सजी है मैना की है शादी, इसीलिए तो बगिया-बगिया कोयल करे मुनादी। पड़की, सुग्गा, श्यामा, बुलबुल इक से एक चिरैया, हँस-हँस मैना से बतियाएँ संग में है गौरैया। चूँ-चूँ, चीं-चीं, कूँ-कूँ कितने स्वर में गाएँ बढ़िया, ताक-धिना-धिन, फुदक-फुदक कर नाच रही हैं चिड़ियाँ। डाल-डाल पर पात सजा है मौसम है सुखदाई, शादी… Continue reading मैना की शादी / शंभूलाल शर्मा ‘बसंत’

लाखों में एक / शंभूप्रसाद श्रीवास्तव

आसमान में लाखों तारे लेकिन उनको कौन निहारे, उगकर सारी रात चमकते मगर अँधेरा मिटा न सकते। एक अकेला चंदा आकर अपनी किरणों को फैलाकर, सबकी आँखें शीतल करता सबके मन में अमृत भरता। यह दुनिया भी बहुत बड़ी है इनसानों से भरी पड़ी है, हर कोई है नन्हा तारा बनकर चाँद करो उजियारा।

हीरा-मोती / शंभूप्रसाद श्रीवास्तव

हम गाँवों में खिलने वाले नन्हे-मुन्ने फूल, चंदन बन जाती है जगकर अंग हमारे धूल! सीधा-सादा रहन-सहन मोटा खाना, पहनावा, नहीं जानते ठाट-बाट चतुराई और दिखावा। मिलीं गोद में हमें प्रकृति की दो वस्तुएँ महान, हीरे जैसी हँसी हमारी, मोती-सी मुसकान!

नाच बँदरिया / शंभूप्रसाद श्रीवास्तव

डमक-डमक-डम, डम-डम-डम नाच बँदरिया छम-छम-छम! तेरा बंदर है शौकीन, पहने है कपड़े रंगीन, नेकटाई चश्मा, पतलून, घर है उसका देहरादून, नहीं किसी साहब से कम, नाच बँदरिया छम-छम-छम! तू पहने कुरती-सलवार, लाल दुपट्टा बूटेदार, कंगन, टीका, झुमका, हार, नकली गहनों की भरमार, गहने चमकें चम-चम-चम! नाच बँदरिया छम-छम-छम! तुम दोनों दिखलाते खेल बच्चों को सिखलाते… Continue reading नाच बँदरिया / शंभूप्रसाद श्रीवास्तव

फूल और शूल / शंभूनाथ शेष

एक दिन जो बाग में जाना हुआ, दूर से ही महकती आई हवा! खिल रहे थे फूल रँगा-रंग के- केसरी थे और गुलाबी थे कहीं, चंपई की बात कुछ पूछो नहीं! खिल रहा था फूल एक गुलाब का, देख जिसको मन बहुत ही खुश हुआ! चाहती थी तोड़ लूँ उस फूल को, पास ही देखा… Continue reading फूल और शूल / शंभूनाथ शेष