अल्फ़ाज नर्म हो गए लहजे बदल गए / शकील जमाली

अल्फ़ाज नर्म हो गए लहजे बदल गए लगता है ज़ालिमों के इरादे बदल गए ये फ़ाएदा ज़रूर हुआ एहतिजाज से जो ढो रहे थे हम को वो काँधे बदल गए अब ख़ुशबुओं के नाम पते ढूँडते फिरो महफ़िल में लड़कियों के दुपट्ट बदल गए ये सरकशी कहाँ है हमारे ख़मीर में लगता है अस्पताल में… Continue reading अल्फ़ाज नर्म हो गए लहजे बदल गए / शकील जमाली

अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था / शकील जमाली

अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था चलो हमी सही सारी बुराईयों का सबब मगर तुझे भी ज़रा सा निभाना चाहिए था अगर नसीब में तारीकियाँ ही लिक्खीं थीं तो फिर चराग़ हवा में जलाना चाहिए था मोहब्बतों को छुपाते हो बुज़दिलों की तरह ये इश्तिहार… Continue reading अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था / शकील जमाली