फूल और शूल / शंभूनाथ शेष

एक दिन जो बाग में जाना हुआ, दूर से ही महकती आई हवा! खिल रहे थे फूल रँगा-रंग के- केसरी थे और गुलाबी थे कहीं, चंपई की बात कुछ पूछो नहीं! खिल रहा था फूल एक गुलाब का, देख जिसको मन बहुत ही खुश हुआ! चाहती थी तोड़ लूँ उस फूल को, पास ही देखा… Continue reading फूल और शूल / शंभूनाथ शेष