जुगनू हवा में ले कि उजाले निकल पड़े / ‘फ़य्याज़’ फ़ारुक़ी

जुगनू हवा में ले कि उजाले निकल पड़े यूँ तीरगी से लड़ने जियाले निकल पड़े सच बोलना महाल था इतना के एक दिन सूरज की भी ज़बान पे छाले निकल पड़े इतना न सोच मुझ को ज़रा देख आईना आँखों के गिर्द हल्के भी काले निकल पड़े महफ़िल में सब के बीच था ज़िक्र-ए-बहार कल… Continue reading जुगनू हवा में ले कि उजाले निकल पड़े / ‘फ़य्याज़’ फ़ारुक़ी

हाथ फैलाओं तो सूरज भी सियाही देगा / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी

हाथ फैलाओं तो सूरज भी सियाही देगा कौन इस दौर में सच्चों की गवाही देगा सोज़-ए-अहसास बहुत है इसे कम-तर मत जान यही शोला तुझे बालीदा-निगाही देगा यूँ तो हर शख़्स ये कहता है खरा सोना हूँ कौन किस रूप में है वक़्त बता ही देगा हूँ पुर-उम्मीद के सब आस्तीं रखते हैं यहाँ कोई… Continue reading हाथ फैलाओं तो सूरज भी सियाही देगा / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी

बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी

बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता न लगती आग तो मैं जंगलों में क्या करता इक इम्तिहान-ए-वफ़ा है ये उम्र भर का अज़ाब खड़ा न रहता अगर ज़लज़लों में क्या करता हो चोब गीली तो आख़िर जलाए कौन उस को मैं तुझ को याद बुझे वलवलों में क्या करता मेरी तमाम हरारत ज़मीं का… Continue reading बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी

बर्क़ को जितनी शोहरत मिली / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी

बर्क़ को जितनी शोहरत मिली आशियाँ की ब-दौलत मिली ज़ब्त-ए-ग़म की ये क़ीमत मिली बे-वफ़ाई की तोहमत मिली उन को गुल का मुकद्दर मिला मुझ को शबनम की क़िस्मत मिली क़ल्ब-ए-मै-ख्वार को छोड़ कर मुझ को हर दिल में नफ़रत मिली उम्र तो कम मिली शम्मा को ज़िंदगी खूब-सूरत मिली मौत लाई नई ज़िंदगी मैं… Continue reading बर्क़ को जितनी शोहरत मिली / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी

ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी

ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर अब ज़ुल्म से बाज़ आ जा अब जौर से तौबा कर टूटे हुए पैमाने बेकार सही लेकिन मै-ख़ाने से ऐ साक़ी बाहर तो न फेंका कर जलवा हो तो जलवा हो पर्दा हो तो पर्दा हो तौहीन-ए-तज़ल्ली है चिलमन से न झाँका कर अरबाब-ए-जुनूँ में हैं… Continue reading ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी

जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था / शकीला बानो

जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था आफ़त के वक़्त वो भी तमाशाइयों में था उस का इलाज कोई मसीहा न कर सका जो ज़ख़्म मेरी रूह की गहराइयों में था वो थे बहुत क़रीब तो थी गर्मी-ए-हयात शोला हुजूम-ए-शौक़ का पुरवाइयों में था कोई भी साज़ उन की तड़प को न पा सका वो… Continue reading जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था / शकीला बानो

दस्त-ए-क़ातिल में ये शमशीर कहाँ से आई / शकीला बानो

दस्त-ए-क़ातिल में ये शमशीर कहाँ से आई नाज़ करती मिरी तक़दीर कहाँ से आई चाँदनी सीने में उतरी ही चली जाती है चाँद में आप की तस्वीर कहाँ से आई अपनी पल्कों पे सजा लाई है किस के जल्वे ज़िंदगी तुझ में ये तनवीर कहाँ से आई हो न हो उस में चमन वालों की… Continue reading दस्त-ए-क़ातिल में ये शमशीर कहाँ से आई / शकीला बानो

ग़मे-आशिक़ी से कह दो / शकील बँदायूनी

ग़मे-आशिक़ी से कह दो रहे–आम तक न पहुँचे । मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुँचे ।। मैं नज़र से पी रहा था कि ये दिल ने बददुआ दी – तेरा हाथ ज़िंदगी-भर कभी जाम तक न पहुँचे । नयी सुबह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है, ये सहर… Continue reading ग़मे-आशिक़ी से कह दो / शकील बँदायूनी

सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से / शकील बँदायूनी

सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से खेलता हूं गर्दिशे-आय्याम[1]से उनकी याद उनकी तमन्ना, उनका ग़म कट रही है ज़िन्दगी आराम से इश्क़ में आएंगी वो भी साअ़तें[2] काम निकलेगा दिले-नाकाम से लाख मैं दीवाना-ओ-रूसवा सही फिर भी इक निस्बत[3] है तेरे नाम से सुबहे-गुलशन[4] देखिये क्या गुल खिलाए[5] कुछ हवा बदली हुई है शाम से… Continue reading सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से / शकील बँदायूनी

अल्फ़ाज नर्म हो गए लहजे बदल गए / शकील जमाली

अल्फ़ाज नर्म हो गए लहजे बदल गए लगता है ज़ालिमों के इरादे बदल गए ये फ़ाएदा ज़रूर हुआ एहतिजाज से जो ढो रहे थे हम को वो काँधे बदल गए अब ख़ुशबुओं के नाम पते ढूँडते फिरो महफ़िल में लड़कियों के दुपट्ट बदल गए ये सरकशी कहाँ है हमारे ख़मीर में लगता है अस्पताल में… Continue reading अल्फ़ाज नर्म हो गए लहजे बदल गए / शकील जमाली