हाथ फैलाओं तो सूरज भी सियाही देगा / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी

हाथ फैलाओं तो सूरज भी सियाही देगा कौन इस दौर में सच्चों की गवाही देगा सोज़-ए-अहसास बहुत है इसे कम-तर मत जान यही शोला तुझे बालीदा-निगाही देगा यूँ तो हर शख़्स ये कहता है खरा सोना हूँ कौन किस रूप में है वक़्त बता ही देगा हूँ पुर-उम्मीद के सब आस्तीं रखते हैं यहाँ कोई… Continue reading हाथ फैलाओं तो सूरज भी सियाही देगा / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी

बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी

बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता न लगती आग तो मैं जंगलों में क्या करता इक इम्तिहान-ए-वफ़ा है ये उम्र भर का अज़ाब खड़ा न रहता अगर ज़लज़लों में क्या करता हो चोब गीली तो आख़िर जलाए कौन उस को मैं तुझ को याद बुझे वलवलों में क्या करता मेरी तमाम हरारत ज़मीं का… Continue reading बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता / ‘फ़ज़ा’ इब्न-ए-फ़ैज़ी