ग़मे-आशिक़ी से कह दो / शकील बँदायूनी

ग़मे-आशिक़ी से कह दो रहे–आम तक न पहुँचे । मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुँचे ।। मैं नज़र से पी रहा था कि ये दिल ने बददुआ दी – तेरा हाथ ज़िंदगी-भर कभी जाम तक न पहुँचे । नयी सुबह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है, ये सहर… Continue reading ग़मे-आशिक़ी से कह दो / शकील बँदायूनी

सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से / शकील बँदायूनी

सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से खेलता हूं गर्दिशे-आय्याम[1]से उनकी याद उनकी तमन्ना, उनका ग़म कट रही है ज़िन्दगी आराम से इश्क़ में आएंगी वो भी साअ़तें[2] काम निकलेगा दिले-नाकाम से लाख मैं दीवाना-ओ-रूसवा सही फिर भी इक निस्बत[3] है तेरे नाम से सुबहे-गुलशन[4] देखिये क्या गुल खिलाए[5] कुछ हवा बदली हुई है शाम से… Continue reading सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से / शकील बँदायूनी