ऐ मेहर-बाँ है गर यही सूरत निबाह की बाज़ आए दिल लगाने से तौबा गुनाह की उल्टे गिले वो करते हैं क्यूँ तुम ने चाह की क्या ख़ूब दाद दी है दिल-ए-दाद-ख़्वाह की क़ातिल की शक्ल देख के हँगाम-ए-बाज़-पुर्स नियत बदल गई मेरे इक इक गवाह की मेरी तुम्हारी शक्ल ही कह देगी रोज़-ए-हश्र कुछ… Continue reading ऐ मेहर-बाँ है गर यही सूरत निबाह की / ‘ज़हीर’ देहलवी
बे-क़नाअत काफ़िले हिर्स ओ हवा ओढ़े हुए / ‘ज़फ़र’ मुरादाबादी
बे-क़नाअत काफ़िले हिर्स ओ हवा ओढ़े हुए मंज़िलें भी क्यूँ न हों फिर फ़ासला ओढ़े हुए इस क़दर ख़िल्क़त मगर है मौत को फ़ुर्सत बहुत हर बशर है आज ख़ु अपनी क़जा़ ओढ़े हुए उन के बातिन में मिला शैतान ही मसनद-नर्शी जो ब-ज़ाहिर थे बहुत नाम-ए-ख़ुदा ओढ़े हुए क्या करे कोई किसी से पुर्सिश-ए-अहवाल… Continue reading बे-क़नाअत काफ़िले हिर्स ओ हवा ओढ़े हुए / ‘ज़फ़र’ मुरादाबादी
बढ़े कुछ और किसी इल्तिजा से कम न हुए / ‘ज़फ़र’ मुरादाबादी
बढ़े कुछ और किसी इल्तिजा से कम न हुए मेरी हरीफ़ तुम्हारी दुआ से कम न हुए सियाह रात में दिल के मुहीब सन्नाटे ख़रोश-ए-नग़मा-ए-शोला-नवा से कम न हुए वतन को छोड़ के हिजरत भी किस को रास आई मसाएल उन के वहाँ भी ज़रा से कम न हुए फ़राज़-ए-ख़ल्क से अपना लहू भी बरसाया… Continue reading बढ़े कुछ और किसी इल्तिजा से कम न हुए / ‘ज़फ़र’ मुरादाबादी
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है / फ़कीर मोहम्मद ‘गोया’
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है मुज़दा ऐ दिल के मौत आई हैं फिर गया जब से वो सनम ब-ख़ुदा हम से बर्गश्ता इक ख़ुदाई है तुम मेरे कज़-कुलाह को देखो ये भला किस में मीरजाई है दिल में आता है राह-ए-चश्म से वो ख़ूब-ये राह-ए-आशनाई है ज़ाहिदो कुदरत-ए-ख़ुदा देखो बुत को भी दावा-ए-ख़ुदाई है काबे… Continue reading हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है / फ़कीर मोहम्मद ‘गोया’
हर रविश ख़ाक उड़ाती है सबा मेरे बाद / फ़कीर मोहम्मद ‘गोया’
हर रविश ख़ाक उड़ाती है सबा मेरे बाद हो गई और ही गुलशन की हवा मेरे बाद क़त्ल से अपने बहुत ख़ुश हूँ वले ये ग़म है दस्त-ए-क़ातिल को बहुत रंज हुआ मेरे बाद मुझ सा बद-नाम कोई इश्क़ में पैदा न हुआ हाँ मगर कै़स का कुछ नाम हुआ मेरे बाद वो जो बर्गश्तगी-ए-बख़्त… Continue reading हर रविश ख़ाक उड़ाती है सबा मेरे बाद / फ़कीर मोहम्मद ‘गोया’
गत मास का साहित्य!! / फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
गत माह, दो बड़े घाव धरती पर हुए, हमने देखा नक्षत्र खचित आकाश से दो बड़े नक्षत्र झरे!! रस के, रंग के– दो बड़े बूंद ढुलक-ढुलक गए। कानन कुंतला पृथ्वी के दो पुष्प गंधराज सूख गए!! (हमारे चिर नवीन कवि, हमारे नवीन विश्वकवि दोनों एक ही रोग से एक ही माह में- गए आश्चर्य?) तुमने… Continue reading गत मास का साहित्य!! / फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
अपने ज़िले की मिट्टी से / फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
कि अब तू हो गई मिट्टी सरहदी इसी से हर सुबह कुछ पूछता हूँ तुम्हारे पेड़ से, पत्तों से दरिया औ’ दयारों से सुबह की ऊंघती-सी, मदभरी ठंडी हवा से कि बोलो! रात तो गुज़री ख़ुशी से? कि बोलो! डर नहीं तो है किसी का? तुम्हारी सर्द आहों पर सशंकित सदा एकांत में मैं सूंघता… Continue reading अपने ज़िले की मिट्टी से / फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
जब सजीले ख़िराम करते हैं / ‘फ़ायज़’ देहलवी
जब सजीले ख़िराम करते हैं हर तरफ़ क़त्ल-ए-आम करते हैं मुख दिखा छब बना लिबास सँवार आशिकों को ग़ुलाम करते हैं ये चकोरे मिल उस सिरीजन सूँ रात दिन अपना काम करते हैं यार को आशिक़ान-साहब-फ़न एक देखे में राम करते हैं गर्दिश-ए-चश्म सूँ सिरीजन सब बज़्म में कार-ए-जाम करते हैं ये नहीं नेक तौर… Continue reading जब सजीले ख़िराम करते हैं / ‘फ़ायज़’ देहलवी
बे-सबब हम से जुदाई न करो / ‘फ़ायज़’ देहलवी
बे-सबब हम से जुदाई न करो मुझ से आशिक़ से बुराई न करो ख़ाक-साराँ को न करिए पामाल जग में फ़िरऔन सी ख़ुदाई न करो बे-गुनाहाँ कूँ न कर डालो क़त्ल आह कूँ तीर-ए-हवाई न करो एक दिल तुम से नहीं है राज़ी जग में हर इक सूँ बुराई न करो महव है ‘फाएज़’-ए-शैदा तुम… Continue reading बे-सबब हम से जुदाई न करो / ‘फ़ायज़’ देहलवी
कहानी हो कोई भी तेरा क़िस्सा हो ही जाती है / ‘फ़य्याज़’ फ़ारुक़ी
कहानी हो कोई भी तेरा क़िस्सा हो ही जाती है कोई तस्वीर देखूँ तेरा चेहरा हो ही जाती है तेरी यादों की लहरें घेर लेती हैं ये दिल मेरा ज़मीं घिर कर समंदर में जज़ीरा हो ही जाती है गई शब चाँद जैसा जब चमकता है ख़याल उस का तमन्ना मेरी इक छोटा सा बच्चा… Continue reading कहानी हो कोई भी तेरा क़िस्सा हो ही जाती है / ‘फ़य्याज़’ फ़ारुक़ी